डीपीजीआरओ द्वारा बोधगया सीओ पर 5000 रुपए अर्थदंड के साथ आरोप पत्र गठन की अनुशंसा


परिवादी का सही काम न करने एवं बेवजह दौड़ाने और परेशान करने पर की गई कार्रवाई

सूरज कुमार/युवा शक्ति न्यूज 

गया: परिवादी का सही काम ना करने एवं बेवजह दौड़ाने और परेशान करने पर लापरवाही के आरोप में डिस्ट्रिक्ट पीजीआरओ सुबोध कुमार ने बोधगया सीओ पर 5000 रुपए अर्थ दंड के साथ आरोप पत्र गठित करने की अनुशंसा की है. दरसल यह मामला मो॰ अली जो ग्राम पश्चिमी नावॉ, पो0 एरोड्राम, थाना+अंचल बोधगया, जिला गया के रहने वाले हैं, ने परिमार्जन नहीं करने से संबंधित है, परिवाद में अनुमण्डलीय लोक शिकायत निवारण पदाधिकारी, सदर के स्तर से पारित आदेश के विरूद्ध अपीलवाद दायर किया गया. निचले स्तर पर लोक प्राधिकार के प्रतिवेदनानुसार परिवादी द्वारा मुकदमा नं० 233/1981 एवं 234/1981 दफा 106 बीटी एक्ट से प्राप्त भूमि का तरमीम खतियान की छायाप्रति में दर्ज भूमि अनाबाद बिहार सरकार खाते की है. मुकदमा नं० 233/1981 एवं 234/1981 दफा 106 बीटी एक्ट से प्राप्त दोनों वादों के फैसला के सत्यापन हेतु सहायक बन्दोबस्त पदाधिकारी, गया को अंचल कार्यालय, बोधगया के पत्र द्वारा सत्यापन हेतु भेजा गया है. सत्यापन प्रतिवेदन प्राप्त होने के पश्चात रसीद ऑनलाइन चढ़ाने की कार्रवाई की जाएगी. अपीलार्थी द्वारा उक्त आदेश के विरूद्ध जिला लोक शिकायत निवारण कार्यालय में प्रथम अपीलवाद दायर किया गया.

लोक प्राधिकार सह सीओ बोधगया द्वारा भेजे गए प्रतिवेदन में प्रतिवेदित किया गया कि
प्रस्तुत परिवाद में लोक प्राधिकार सह सीओ बोधगया के स्तर से भेजे पत्र में प्रतिवेदित किया गया है कि उक्त भूमि का हाल सर्वे खतियान अनाबाद बिहार सरकार दर्ज है. आवेदक द्वारा तरमीम खतियान की छायाप्रति उपलब्ध कराया गया है, जिसके अवलोकन से पता चलता है कि आवेदक द्वारा बीटी एक्ट की दफा 106 वाद सं०- 233/81 से आदेश प्राप्त है. तत्पश्चात् डीसीएलआर  के विविध वाद सं0 08/94-95 से रसीद निर्गत करने का आदेश प्राप्त है. तदालोक में जमाबंदी पंजी में जमाबंदी सं0- 185/3 पर शमी अहमद, पिता-वली अहमद वो अजीजा खातून, पति- शमी अहमद का नाम दर्ज है. पूर्व में परिवादी के पिता एवं माता के नाम से 6.38 ए0 भूमि का रसीद कटा हुआ है. इस प्रकार खाता सं0- 357, खेसरा सं0- 1332, रकवा- 0.20 ए0 का लगान निर्धारण नहीं किया गया है, जबकि विवरण जमाबंदी पर दर्ज कर दिया गया है. जमाबंदी सुधार करने का प्रस्ताव एडीएम (राजस्व) को समर्पित किया जा रहा है. चूँकि अन्य भूमि का विवरण पूर्व में ऑनलाइन नहीं किया गया है, जिसे ऑनलाइन के लिए नया जमाबंदी इंट्री माना जा सकता है, जिसका अद्यतीकरण वर्तमान में विभाग द्वारा रोक दिया गया है. पुनः प्रारंभ होने पर अद्यतीकरण की जाएगी.

डीपीजीआरओ के द्वारा सीओ से पूछने पर बताया गया कि अब तक जांच करवा रहें हैं
इस संबंध में डीपीजीआरओ के द्वारा सीओ से पूछा गया कि 6.18 एकड़ का ही जमाबंदी ऑनलाइन क्यों नहीं कर दिए तो, कहा गया कि डीसीएलआर के आदेश और बीटी एक्ट धारा 106 के तहत आदेश की सत्यता जाँच करवा रहे हैं, जबकि स्वयं सीओ द्वारा अपने प्रतिवेदन में खतियान में तरमीम की बात भी अंकित है.पुनः सीओ से पूछा गया कि खतियान में तरमीम है ही और रसीद भी मैनुअल कट रही थी तो ऑनलाइन जमाबंदी कम से कम 6.18 एकड़ का ऑनलाइन के शुरूआत में ही दर्ज क्यों नहीं हुआ? अगर नहीं भी हुआ तो परिमार्जन से तो आसानी से हो सकता था. परिवादी ने वर्ष 2021 एवं 2022 में भी परिमार्जन हेतु आवेदन दिया था, तो भी परिमार्जन हो जाना चाहिए था. इसको नई जमाबंदी इंट्री कैसे और क्यों माना जाएगा? इसका कोई जवाब सीओ, बोधगया के द्वारा नहीं  दिया गया.

डिस्ट्रिक्ट पीजीआरओ ने सभी बिंदुओं की समीक्षा उपरांत दिए निम्न ऑब्ज़र्वेशन
इस मामले में जिला लोक शिकायत निवारण पदाधिकारी सुबोध कुमार ने उपरोक्त सभी बिंदुओं के समीक्षोपरांत बताया कि लोक प्राधिकार सह सीओ बोधगया द्वारा दोनों जगह (अनुमंडल/जिला लोक शिकायत निवारण कार्यालय) पर दिया गया प्रतिवेदन मैच नहीं करता. दोनों जगह का प्रतिवेदन भिन्न-भिन्न है.सीओ मामले का निपटारा न कर सिर्फ टाल-मटोल का रवैया अपनाए हैं ताकि किसी तरह कागजी रूप से परिवाद का निष्पादन हो जाए.जब डीसीएलआर के आदेश में 6.18 एकड़ का ही वर्णन है तो सीओ कम से कम 6.18 एकड़ की ऑनलाइन जमाबंदी तो कायम कर ही सकते थे. शेष 20 डिसमिल पर बाद में विचार करते रहते. लेकिन सीओ द्वारा ऐसा न कर मामले को उलझाने हेतु 20 डिसमिल से संबंधित मामले का हवाला देकर पूरे मामले को एडीएम (राजस्व) के पास भेजने की बात कही जा रही है. इस संबंध में यह भी द्रष्टव्य है कि संबंधित जिस खेसरा संख्या 1332 रकवा 20 डी॰ की बात कही जा रही है, वह खतियान में तरमीम है, जो वाद संख्या 233/81 में स्पष्ट रूप से वर्णित भी है. स्पष्ट है कि डीसीएलआर, सदर के आदेश में लिपिकीय भूलवश खेसरा 1332 रकवा 20 डी॰ की प्रविष्टि नहीं हुई होगी. स्पष्ट है कि सीओ, बोधगया द्वारा तरमीम खतियान और वाद संख्या 233/81 का सही ढंग से अवलोकन नहीं किया गया. अगर इनके द्वारा उस 20 डी॰ पर कोई आपत्ति थी तो भी 6.18 एकड़ के ऑनलाइन प्रविष्टि में तो कोई दिक्कत नहीं थी. उसे आसानी से किया जा सकता था.

स्पष्ट मामले में भी अगर परिवादी को पिलर टू पोस्ट दौड़ाया जाएगा तो उनका सिस्टम से विश्वास उठ जाएगा
डीपीजीआरओ ने कहा की इतने स्पष्ट मामले में भी अगर परिवादी को पिलर टू पोस्ट दौड़ाया जाएगा तो परिवादी का सिस्टम से विश्वास ही उठ जाएगा. स्पष्ट है कि निहित स्वार्थवश परिवादी का काम नहीं किया गया जो स्वयमेव ही हो जाना चाहिए था. क्योंकि आरओआर के कार्य में जो जमाबंदी छूट गए थे, उनको चुन-चुन कर ऑनलाइन चढ़ा देना था. अगर जमाबंदी गलत होती तो भी गलत जमाबंदी को ऑनलाइन चढ़ाने के बाद उस पर निर्णय होता. किसी भी कट रही लगान रसीद के अनुसार कायम जमाबंदी को अपने मन से ऑनलाइन न चढ़ाना सीओ के अधिकार क्षेत्र से बाहर है (विदित हो कि परिवादी का 2015-16 तक लगान रसीद मैनुअल कट रहा था, परिवादी द्वारा 2015-16 का लगान रसीद का छाया प्रति दिया गया है). छूटे हुए जमाबंदी को ऑनलाइन चढ़ाने के लिए ही विभाग द्वारा आरओआर के तहत नई जमाबंदी नाम से इंट्री के लिए नियम बनाया गया था. जिसमें विभाग द्वारा काफी समय दिया गया.पहले स्वयमेव फिर परिमार्जन में जमाबंदी ऑनलाइन न होने के कारण आरओआर के तहत परिवादी की जमाबंदी ऑनलाइन तो निश्चित रूप से हो जानी चाहिए थी लेकिन सीओ द्वारा इस पर कोई ध्यान नहीं दिया गया और समय बीतने पर ऑनलाइन के लिए परिवादी के छूटे हुए जमाबंदी को नई जमाबंदी इंट्री मानते हुए अद्यतीकरण को विभाग द्वारा रोकने संबंधी प्रतिवेदन दिया जा रहा है. सीओ, बोधगया द्वारा सिर्फ वाद संख्या 233/81 के तहत 6.38 एकड़ के संबंध में ही चर्चा की गई है जबकि परिवादी द्वारा वाद संख्या 234/81, 235/81 एवं 236/81 रकवा सुधार 255/84 का भी जिक्र किया गया है. जिसमें 3.37 एकड़ भूमि सन्निहित है. इस भूमि का मैनुअल कटे हुए रसीद (2015-16) की छायाप्रति भी परिवादी द्वारा प्रस्तुत की गई है. इसका भी ऑनलाइन प्रविष्टि सीओ द्वारा नहीं किया गया है. जबकि इसमें कहीं कोई दिक्कत नहीं थी.

पूरा मामला सीओ द्वारा निहित स्वार्थवश परिवादी का काम न करने से संबंधित है : डीपीजीआरओ
डीपीजीआरओ ने बताया की स्पष्ट है कि पूरा मामला सीओ द्वारा निहित स्वार्थवश परिवादी का काम न करने से संबंधित है. लिहाजा यह मामला कृत्यकरण के तहत आता है. सीओ का कृत्य बिहार लोक शिकायत निवारण अधिकार अधिनियम, 2015 की मूल भावना के प्रतिकूल है, जो किसी दृष्टिकोण से उचित नहीं कहा जा सकता. साथ ही बिहार सरकारी सेवक आचार नियमावली, 1976 की धारा 3(1) के भी प्रतिकूल है. अतएव इस अधिनियम की धारा 8 के तहत रू 5000 शास्ति अधिरोपित करने एवं अपर मुख्य सचिव-सह-मिशन निदेशक, बिहार प्रशासनिक सुधार मिशन सोसाइटी, बिहार, पटना के पत्रांक, दिनांक के आलोक में अनुशासनिक कार्रवाई (आरोप पत्र गठन) की अनुशंसा की जाती है. साथ ही आदेश की प्रति एडीएम (राजस्व), डीएम, मगध प्रमंडल आयुक्त, गया को भेजने का निर्देश दिया गया है.

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