बंगाल में प्रति व्यक्ति ऋण 60,000 रुपये को पार कर गया है. आधिकारिक आंकड़ों के मुताबिक बंगाल सरकार पर इस समय कुल 5.86 लाख करोड़ रुपये का ऋण है. 2011 में जब तृणमूल कांग्रेस सत्ता में आई थी, उस समय बंगाल पर कुल ऋण 1.97 लाख करोड़ रुपये का था. बंगाल की जनसंख्या वर्तमान में लगभग नौ करोड़ है.
तृणमूल सरकार ने हाल में पेश वित्त वर्ष 2023-24 के राज्य बजट में बाजार से 97,000 करोड़ रुपये जुटाने का प्रस्ताव रखा है, वहीं वित्त वर्ष 2022-23 में 75,000 करोड़ रुपये का लक्ष्य रखा गया था. 2023-24 में राज्य सरकार ने करों से 89,000 करोड़ रुपये के राजस्व संग्रह का अनुमान जताया है.
जाने-माने अर्थशास्त्री अजिताभ रायचौधरी ने कहा कि वर्तमान पीढ़ी ने खुदपर ऋण को इतना बोझ चढ़ा लिया है कि भावी पीढ़ी को इसका भुगतान करना होगा. जितना ऋण है, उतने ही परिमाण में संपत्ति भी बनाई गई होती तो भावी पीढ़ी पर बोझ कम होता. जानकारों का कहना है कि आने वाले साल बंगाल सरकार के लिए आर्थिक दृष्टिकोण से और भी मुश्किल होने वाले हैं क्योंकि राज्य सरकार के खर्चे दिन-ब-दिन बढ़ते जा रहे हैं और उस परिमाण में राजस्व संग्रह नहीं हो पा रहा. राजनीतिक बाध्यता के कारण वर्तमान ममता सरकार बंगाल की जनता पर आर्थिक बोझ भी नहीं डाल पा रही.
गौरतलब है कि भारतीय रिजर्व बैंक की ओर से पिछले साल जारी किए गए आंकड़ों में बंगाल, बिहार, आंध्र प्रदेश, पंजाब, राजस्थान, केरल, झारखंड, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश और हरियाणा को सर्वाधिक प्रति व्यक्ति ऋण वाले राज्य बताया गया था. ये 10 राज्य देश के सभी राज्यों के कुल व्यय के 50 प्रतिशत के लिए जिम्मेदार हैं. बंगाल, राजस्थान, पंजाब और केरल अपने राजस्व संग्रह का 90 प्रतिशत तक खर्च कर डालते हैं.
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