संत कबीर का अवतरण तत्कालीन समाज में संव्याप्त मूढ़-मान्यताओं और अंधपरंपराओं का खंडन करने एवं विभिन्न संप्रदायों के बीच पारस्परिक सद्भाव बढ़ाने के निमित्त हुआ था। उन्होंने अपने जीवनकाल में कितने ही लोगों को ऊँचा उठाया व आगे बढ़ाया। वे मुसलमानों से जितना सद्भाव रखते थे, उससे किसी भी प्रकार कम महत्त्व हिंदुओं एवं अन्य धर्मावलंबियों को नहीं देते थे। सभी के लिए उनके दिल में एक जैसा प्यार था। यह बात कट्टर मुसलमानों को बुरी लगी। वे नहीं चाहते थे कि इस्लाम वंश में पैदा होकर कबीर हिंदू धर्म का प्रचार करें। उनमें से कुछ लोगों ने इसकी शिकायत तत्कालीन मुसलिम बादशाहसिकंदर लोदी से की।
बादशाह ने कबीर को मृत्युदंड सुनाया। उन्हें लोहे की बेड़ी में कसकर बहती गंगा में फेंक दिया गया। कबीर डूबे, पर मरे नहीं। चमत्कार यह हुआ कि अंदर जाते ही लोहे के बंधन स्वतः टूट गए। वे बहते-बहते किनारे आ लगे। जब यह अद्भुत घटना बादशाह तक पहुँची, तो वे अचंभे में पड़ गए। बाद में बादशाह ने कबीर से क्षमा माँगी तथा धार्मिक एकता संबंधी प्रचार करने की छूट दे दी। प्रस्तुत घटना में कबीर की जीवन-रक्षा अदृश्य सत्ता ने ही की थी, यही माना जाएगा।
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