आतंकी समूहों को समर्थन देने की दांव ने पाकिस्तान को खतरनाक स्थिति में लाकर खड़ा किया


पड़ोसी देश अफगानिस्तान में बिगड़ती सुरक्षा स्थिति के बीच प्रधानमंत्री इमरान खान की सैन्य और सुरक्षा तंत्र पर नियंत्रण न होने के कारण पाकिस्तान 'तख्तापलट या क्रांति के लिए अतिसंवेदनशील' है। राजनीतिक सलाहकार केली अलखौली ने बात कही है। सेंटर ऑफ पॉलिटिकल एंड फॉरेन अफेयर्स (CPFA) में अंतरराष्ट्रीय संबंधों के निदेशक अलखौली ने एक लेख में कहा कि तालिबान पर पाकिस्तान के कमजोर नियंत्रण ने इसे अफगानिस्तान में अपनी संभावित जीत को लेकर अधिक सावधान कर दिया है। आतंकी समूहों को समर्थन देने के पाकिस्तान के दांव ने उसे खतरनाक स्थिति में लाकर खड़ा कर दिया है। इस कारण उसके काफी कम सहयोगी हैं और उसके प्रति अविश्वास गहरा गया है।

केली अलखौली ने आगे कहा कि 9/11 के आतंकी हमले के बाद, अमेरिका ने आतंकवाद का मुकाबला करने और अल कायदा के आतंकी नेटवर्क को खत्म करने के लिए अफगानिस्तान पर आक्रमण किया। अमेरिका को इसके लिए 800 बिलियन डॉलर से अधिक खर्च करना पड़ा। इसने एक युद्ध-ग्रस्त देश को तालिबान की जीत के प्रति संवेदनशील बना दिया है।

तालिबान और अन्य जिहादी समूहों को निरंतर समर्थन

केली का विचार है कि तालिबान और अन्य जिहादी समूहों को निरंतर समर्थन देकर पाकिस्तान ने अफगानिस्तान में अमेरिका की विफलता में 'महत्वपूर्ण भूमिका' निभाई है। पाकिस्तान की सेना एक पारंपरिक युद्ध में मुकाबला नहीं कर सकती है। इस वास्तविकता को स्वीकार करते हुए पाकिस्तान ने क्षेत्र में विदेशी हस्तक्षेपों का मुकाबला करने और भारत को अस्थिर करने के लिए कट्टरपंथी जिहादी समूहों की मदद की। आइएसआइ तालिबान, हक्कानी नेटवर्क, जैश-ए-मुहम्मद (JeM) और लश्कर-ए-तैयबा (LeT) सहित कई आतंकवादी संगठनों को दशकों से प्रशिक्षण, हथियार, धन और खुफिया जानकारी प्रदान कर रही है।

मसूद अजहर जैसे आतंकवादियों के लिए एक सुरक्षित पनाहगाह

केली ने याद दिलाया कि पाकिस्तान के पूर्व राष्ट्रपति परवेज मुशर्रफ ने स्वीकार किया था कि सरकार ने आतंकवादी समूहों को भारतीय धरती पर हमले करने में सक्षम बनाया है। भयानक अपराधों के बावजूद, पाकिस्तान इन समूहों पर गंभीरता से मुकदमा चलाने से इन्कार करता है और जैश के सरगना मसूद अजहर जैसे आतंकवादियों के लिए एक सुरक्षित पनाहगाह बना हुआ है। विशेषज्ञ का मानना ​​है कि अफगानिस्तान में अपने प्रभाव क्षेत्र का विस्तार करने और जम्मू और कश्मीर में इस्लामी विद्रोह का समर्थन करने के लिए जिहादी समूहों का पाकिस्तान का समर्थन आंशिक रूप से कुटिल यथार्थवाद से उपजा है। हालांकि, इसे देश और उसके संस्थानों के कट्टरपंथ से भी प्रोत्साहित किया गया है।

पाकिस्तान की रणनीति उलटा भी पड़ सकती है

केली ने आगे कहा कि पाकिस्तान की रणनीति 80 के दशक में सोवियत संघ और आज अमेरिका को हराने में सफल रही, लेकिन यह उलटा भी पड़ सकता है। इसकी कमजोर राजनीतिक स्थिरता को खतरे में डाल सकता है और परमाणु हथियारों के कब्जे वाले देश को और अधिक कट्टरपंथी बना सकता है।

पाकिस्तान में हिंसा फैलेगी

केली ने चेताया कि अमेरिकी सैनिकों या एक विश्वसनीय शांति समझौता न होने के कारण पाकिस्तान में हिंसा फैलेगी और परिणामस्वरूप शरणार्थियों का एक बड़ा प्रवाह होगा। तालिबान की जीत पाकिस्तान में मौजूद अन्य इस्लामी समूहों को भी प्रोत्साहित करेगी, जो एक इस्लामी क्रांति देखना चाहते हैं। ऐसे में इमरान खान की अपने देश के सैन्य और सुरक्षा तंत्र पर नियंत्रण की कमी के कारण अधिक आंतरिक विभाजन होंगे, जो पाकिस्तान को तख्तापलट या क्रांति के लिए अतिसंवेदनशील बना सकते हैं।

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