तीन तेल भंडारों को भरकर सरकार ने बचाएं 5,000 करोड़ रुपये, नए बनाने में अड़चन

देश में रणनीतिक तेल भंडारों की बढ़ती जरूरत के बावजूद इनके निर्माण में दिक्कतें आ रही हैं। मौजूदा तीनों भंडारों को सरकार ने पिछले वर्ष बेहद सस्ता हुए कच्चा तेल से भरकर 5,000 करोड़ रुपये से ज्यादा की बचत की है। इसके बावजूद देश में दो नए रणनीतिक तेल भंडार बनाने की राह आसान नजर नहीं आ रही है। केंद्र सरकार ने जून, 2018 में ओडिशा के चंडीखोल और कर्नाटक के पादुर में 65 लाख टन की संयुक्त क्षमता के दो रणनीतिक भंडार बनाने का फैसला किया था। यह भूमि अधिग्रहण में विलंब की वजह से लंबित चल रहा है। 

केंद्र सरकार की इन दोनों परियोजनाओं के बारे में राज्य सरकारों से बात हो रही है, लेकिन सरकारी अधिकारी भी बताने की स्थिति में नहीं हैं कि यह काम कब तक पूरा होगा। हाल ही में संसदीय समिति ने भी एक रिपोर्ट में इस परियोजना में होने वाली देरी को लेकर अपनी चिंता जताई है। अभी देश में विशाखापत्तनम, मेंगलुरु और पादुर में क्रमश 13.3 लाख टन, 15 लाख टन और 25 लाख टन क्षमता के कच्चे तेल के रणनीतिक भंडार हैं। इन तीनों भंडारों में देश की 9.5 दिनों की खपत के बराबर क्रूड जमा किया जा सकता है। 

हाल के दिनों में जब अंतरराष्ट्रीय बाजार में क्रूड काफी सस्ता था तब भारत सरकार ने इन तीनों भंडारों को भर लिया है। चंडीखोल और पादुर में जो नए भंडार बनाने की तैयारी है उससे देश की क्षमता के 12 दिनों के बराबर तेल रखा जा सकेगा। इसके अलावा भारत अमेरिका में भी कच्चे तेल के रणनीतिक भंडार खरीदने पर काम कर रहा है। सरकार की योजना है कि आने वाले दिनों में भारत के पास आपातकालीन हालात में कम से कम 30 दिनों का तेल भंडार हो।

पिछले वर्ष सरकार ने तीनों भंडारों को भरने के लिए 3,184 करोड़ रुपये का आवंटन किया था। हालांकि वित्त वर्ष 2020-21 की शुरुआत में पहले सिर्फ 690 करोड़ रुपये का आवंटन किया गया था लेकिन जब अंतराष्ट्रीय कीमतों में कमी आई तो अतिरिक्त आवंटन किया गया। बताया जाता है कि जब अप्रैल-मई में जब देश में पेट्रोलियम उत्पादों की आपूर्ति काफी कम हो गई थी तब सरकारी कंपनियों की रिफाइनरियों ने आयातित तेल को रणनीतिक भंडारों में रखना शुरू कर दिया था। इससे सरकार को 5,069 करोड़ रुपये की बचत हुई है।

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