कोरोना संक्रमण ने जब पांव पसारना शुरू किया था तब विशेषज्ञों ने डराने वाली भविष्यवाणियां की थीं। उनका मानना था कि भारत जैसी बड़ी आबादी वाले देश को इस महामारी का सबसे ज्यादा खामियाजा उठाना पड़ेगा और लाखों लोग मारे जाएंगे। इस समय जबकि अमेरिका व ब्रिटेन समेत कई विकसित देशों में टीकाकरण अभियान जोरों पर है, तब भी वहां कोरोना संक्रमण रफ्तार में है। अमेरिका में जहां रोजाना 50 हजार के आसपास मामले आ रहे हैं, वहीं रूस व ब्रिटेन में भी आंकड़ा 10 हजार के पार है।
इनके विपरीत भारत में विगत सप्ताह से कोरोना संक्रमण के दैनिक मामले 10 हजार के आसपास रह गए हैं। दैनिक मौतों के मामले भी हजार के नीचे आ गए हैं। यह भी साफ हो चुका है कि कोरोना के मामलों में गिरावट जांच कम होने के कारण नहीं है। अब विशेषज्ञ यह पता लगाने में जुटे हैं कि क्या भारत में कोरोना महामारी समाप्ति की ओर है? क्या हर्ड इम्युनिटी विकसित हो चुकी है? आखिर क्या कारण है कि कोरोना संक्रमण के मामले कम हो गए हैं?
हर्ड इम्युनिटी की हकीकत
हालिया सीरो सर्वे के अनुसार, 21 फीसद वयस्क व 25 प्रतिशत बच्चे पहले ही कोरोना वायरस के संपर्क में आ चुके हैं। इसमें यह भी बताया गया है कि झुग्गी बस्तियों में रहने वाली 31 फीसद व झुग्गियों के बाहर रहने वाली 26 फीसद शहरी आबादी तथा 19 फीसद ग्रामीण जनसंख्या कोरोना संक्रमित हो चुकी है। दिल्ली और पुणे जैसे महानगरों से आने वाली रिपोर्ट बताती है कि अभी 50 फीसद लोगों में हर्ड इम्युनिटी नहीं विकसित हो पाई है। कुछ ऐसे भी साक्ष्य मिले हैं, जिनसे पता चलता है कि कुछ जगहों पर स्थितियां हर्ड इम्युनिटी के करीब पहुंच चुकी हैं। हालांकि, विशेषज्ञों का कहना है कि देश के कुछ हिस्सों में हर्ड इम्युनिटी की स्थिति भले ही बन चुकी हो, लेकिन समग्रता में अभी बहुत पीछे हैं।
..तो मामले कम क्यों हो रहे हैं
विशेषज्ञ कहते हैं कि इसके अलग-अलग कारण हो सकते हैं। शहरों और खासकर सघन आबादी वाली झुग्गी बस्तियों में ज्यादा लोग संक्रमित हो चुके होंगे। छोटे शहरों व गांवों के मुकाबले शहरी जिलों में संक्रमण ज्यादा फैला होगा। इन स्थानों में संक्रमण दर में उल्लेखनीय अंतर रहा है। शहरी क्षेत्रों में दैनिक मामले लगातार गिर रहे हैं। हालांकि, ग्रामीण क्षेत्रों को लेकर रहस्य अब भी बरकरार है। विशेषज्ञ कहते हैं, 'भले ही सीरो सर्वे में भारत अभी हर्ड इम्युनिटी से दूर दिख रहा हो, लेकिन वास्तविकता यह है कि दिल्ली, मुंबई, पुणे और बेंगलुरु जैसे महानगरों के 60 फीसद लोगों में एंटीबॉडी पाई गई है। यह भी तर्क दिया जा रहा है कि भारत की बड़ी आबादी में कोरोना संक्रमण के लक्षण या तो बिल्कुल नहीं दिखाई दिए या बेहद आंशिक रूप से दिखे। ऐसे में यह संभव है कि भारत बहुत पहले हर्ड इम्युनिटी के करीब पहुंच चुका हो।
लॉकडाउन व एहतियात ने किया काम
विज्ञानियों के एक वर्ग को यह संदेह है कि भारत में वास्तव में कोरोना संक्रमण के कारण जितनी मौते हुई हैं, रिकॉर्ड में उनसे कम आ पाई हैं। हालांकि, इसका फायदा भी मिला। लोग दहशत में नहीं आए, जिसकी वजह से कोरोना संक्रमण को नियंत्रित करने में मदद मिली। हालांकि, मार्च में लॉकडाउन लागू किए जाने से भी कोरोना संक्रमण को काबू में करने में बड़ी मदद मिली। फेस मास्क के इस्तेमाल, शारीरिक दूरी और स्कूल-कॉलेजों का बंद रहना और घर से काम करने की प्रवृत्ति ने भी संक्रमण को फैलने से रोका।
युवा आबादी व गांव भी बड़ी वजहें
विज्ञानी कम मृत्युदर का श्रेय भारत की युवा आबादी और उनकी रोग प्रतिरोधी क्षमता तथा ग्रामीण जीवनशैली को देते हैं। वे कहते हैं कि कोरोना वायरस के ड्रॉपलेट्स बंद कमरे में ज्यादा प्रभावी होते हैं, लेकिन भारत की 65 फीसद आबादी तो गांवों में रहती है और उसे खुले में रहने व काम करने की आदत है।
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