बिहार: नीतीश का छलका दर्द, मांझी ने बदले तेवर, NDA में क्या सब कुछ ठीक नहीं चल रहा

बिहार में नीतीश कुमार के नेतृत्व वाली एनडीए सरकार को बने हुए दो महीने होने जा रहे हैं, लेकिन अभी तक न तो कैबिनेट का विस्तार हो सका है और न ही राज्यपाल कोटे की विधान परिषद (एमएलसी) सीटों के बंटवारे का फॉर्मूला सामने आया है. इस सबके बीच मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने कहा कि चुनाव में पता ही नहीं चला कि उनका 'दोस्त' कौन है और 'दुश्मन' कौन है? वहीं, एनडीए के सहयोगी जीतनराम मांझी राजनीतिक तेवर दिखाने लगे हैं और  तेजस्वी यादव की शान में कसीदे पढ़ रहे हैं. ऐसे में सवाल उठता है कि क्या एनडीए में सब कुछ ठीक नहीं चल रहा है, जिसके चलते नीतीश और मांझी इशारों-इशारों में बीजेपी पर निशाना साध रहे हैं? 

नीतीश का छलका दर्द

मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को जब-जब मौका मिलता है, वो कहने से नहीं चूकते हैं. नीतीश ने एक बार फिर कहा कि वह मुख्यमंत्री नहीं बनना चाहते थे और दबाव में यह जिम्मेदारी ली है. जेडीयू प्रदेश कार्यकारिणी की बैठक में नीतीश कुमार ने कहा कि चुनाव में जब हमारे लोग कम जीते तो हमारा मन नहीं था मुख्यमंत्री बनने का, लेकिन सीएम अपनी पार्टी और बीजेपी के चलते बना हूं. हालांकि, साथ ही उन्होंने यह भी कहा कि एनडीए में सबकुछ 5 महीने पहले तय हो जाना चाहिए था. कोरोना की वजह से उम्मीदवारों को प्रचार के लिए कम समय मिला, जिसका खामियाजा जेडीयू को उठाना पड़ा. नीतीश का यह इशारा एनडीए में सीट बंटवारे में देरी पर है.

चुनाव नतीजे से दुखी नीतीश

बिहार विधानसभा चुनाव में इस बार जेडीयू की सीटें बीजेपी से कम आई हैं. बीजेपी को 74 तो जेडीयू को 43 सीटें ही मिल सकी हैं. एनडीए में बीजेपी की बड़े भाई की भूमिका को नीतीश हजम नहीं कर पा रहे हैं. यही वजह है कि मुख्यमंत्री नीतीश ने कहा कि पता ही नहीं चला कि कौन दुश्मन है और कौन दोस्त. बता दें कि पूर्व मंत्री और जेडीयू नेता जयकुमार सिंह को इस बार बीजेपी से एलजेपी में आए उम्मीदवार राजेंद्र सिंह की वजह से तीसरे स्थान पर रहना पड़ा था.

नीतीश कुमार के करीबी माने जाने वाले अभय कुशवाहा को हार का सामना करना पड़ा है. सियासत के माहिर रहे नीतीश कुमार से कहां चूक हो गई और उनका गणित कहां गड़बड़ा गया, जिससे वो दुश्मन और दोस्त में फर्क ही नहीं समझ सके. हालांकि, नीतीश ने अपने सभी हारे उम्मीदवारों से कहा कि चुनाव परिणाम को भूलकर पूरी मजबूती के साथ काम में लग जाएं, जैसे विधायक चुनाव जीतकर आते हैं.

मांझी भी दिखा रहे तेवर

एनडीए के सहयोगी हिंदुस्तान अवाम मोर्चा के मुखिया जीतन राम मांझी भी वक्त की नजाकत को देखते हुए अपने तेवर दिखाने लगे हैं. एक एमएलसी व एक और मंत्री पद की मांग करने के बाद मांझी ने कहा कि 'राजनीति में गठबंधन धर्म को निभाना अगर सीखना है तो नीतीश कुमार से सीखा जाना चाहिए है. गठबंधन में शामिल दल के आंतरिक विरोध और साजिशों के बावजूद भी उनका सहयोग करना नीतीश को राजनैतिक तौर पर और महान बनाता है. मांझी ने नीतीश से सीखने की बात कहने के साथ ही दूसरे ट्वीट में तेजस्वी यादव को बिहार के भविष्य का नेता बताया और साथ ही पॉजिटिव राजनीति करने की सलाह दी. 

बीजेपी-जेडीयू शीर्ष नेताओं की बैठक

जेडीयू और बीजेपी के दोनों शीर्ष नेताओं के बीच हाल ही में मुलाकात हुई थी, जिसमें औपचारिक तौर पर बताया गया था कि मंत्रिमंडल विस्तार को लेकर दोनों ही पार्टी के नेताओं ने सिर्फ यही कहा कि कहीं कोई विवाद नहीं है और समय से सब कुछ हो जाएगा. हालांकि यह कब होगा और इसके लिए वार्ता कब होगी, इस पर किसी ने कुछ भी कहने से परहेज किया.

बैठक के बाद जेडीयू और बीजेपी के दोनों नेता सिर्फ यही बताने में जुटे थे कि एनडीए में सब कुछ ऑल इज वेल है और बिहार में एनडीए की सरकार 5 साल तक मजबूती के साथ चलेगी. इसके बाद भी नीतीश कुमार और जीतनराम मांझी के बयान सामने आए हैं, जिसके सियासी मायने निकाले जा रहे हैं.

बिहार में एक दूसरे के MLA पर नजर 

दरअसल, बिहार में इस बार जनादेश ऐसा आया है कि एनडीए और महागठबंधन के बीच बहुत ज्यादा सीटों का फर्क नहीं है. एनडीए के पास 125 सीटें हैं तो महागठबंधन को भी 110 विधायकों का समर्थन हासिल है. इसके अलावा 5 AIMIM और एक बसपा और निर्दलीय विधायक है. इसलिए बिहार में जोड़तोड़ की राजनीति शुरू है, पहले आरजेडी की ओर से यह कहा गया कि जेडीयू के 17 विधायक उनकी पार्टी में शामिल होने को तैयार बैठे हैं. इसके बाद कांग्रेस के नेता भरत सिंह का कहना है कि कांग्रेस के 11 विधायक एनडीए में शामिल हो सकते हैं और अब बीजेपी ने कहा कि खरमास के बाद आरजेडी को कुछ ऐसी चेतावनी दी है. 

इस सियासी उठापटक के बीच जेडीयू विधायक गोपाल मंडल ने यह कहकर सियासत को और गर्मा दिया है कि नीतीश कुमार के नेतृत्व वाली सरकार महज 6 महीने ही चल सकेगी और उसके बाद तेजस्वी यादव बिहार के मुख्यमंत्री बनेंगे. हालांकि, जब बात बढ़ गई तो उन्होंने सफाई देते हुए कहा कि उनके कहने का मतलब था कि आरजेडी के लोग ऐसा सोचते हैं. ऐसे में सवाल उठता है कि बिहार की सियासत में एक दूसरे के विधायकों को अपने पाले में लाने का कोई गेम तो नहीं चल रहा है.  

दरअसल, 2015 में नीतीश कुमार आरजेडी और कांग्रेस के सहयोग से मुख्यमंत्री बने और फिर महागठबंधन छोड़कर एनडीए में वापस आ गए. तब से ही आरजेडी के नेता नीतीश कुमार पर धोखेबाजी का आरोप लगाते रहे हैं. चुनाव के बाद से ही तेजस्वी यादव बार-बार दोहराते रहे हैं कि नीतीश कुमार 'परिस्थितियों वाले मुख्यमंत्री' हैं.

वहीं, नीतीश कुमार पर 'परिस्थितियों वाला मुख्यमंत्री' होने का आरोप विपक्ष लगाता रहा है जबकि 'दबाव वाला मुख्यमंत्री' होने की बात तो खुद नीतीश कह रहे हैं. ऐसे में सवाल उठता है कि 15 साल से जिस नीतीश कुमार के इर्द-गिर्द बिहार की सत्ता सिमटी हुई है, वो किस दबाव में है. 

ADVERTISEMENT


Post a Comment

Previous Post Next Post