युवा शक्ति संवाददाता
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हावड़ा : कोरोना वायरस जैसी विश्व महामारी के कारण देश अभी कठिन दौर से गुजर रहा है। और इसी कठिन दौर में प्रवासी मजदूर किसी तरह अपने गांव पहुंच जाना चाहते हैं। इसी कड़ी में रविवार सुबह, गोद में बहन को लिए बड़ी बहन, छोटे बेटे का हाथ पकड़कर चल रहा एक पिता, सिर पर सामानों को लेकर चल रहा एक 12 वर्षीय बच्चे सहित 54 प्रवासी श्रमिकों को डोमजूर में राष्ट्रीय राजमार्ग संख्या 6 पर घर लौटते देख लोगों की रूह कांप गई। समूह में 10 महिलाएं और 10 बच्चे भी शामिल थे। आखिर भरी दोपहरी में ये कहां जाना चाहते थे। पूछने पर प्रवासी श्रमिकों ने कहा कि वे हैदराबाद, तेलंगाना के कम्पाली नामक स्थान पर एक श्रम ठेकेदार के तहत राजमिस्त्री और मजदूरी का काम करते थे।
तालाबंदी शुरू होने के बाद वे वस्तुतः बेरोजगार हो गए। उन्हें कंपनी से कोई वित्तीय सहायता नहीं मिली। किसी तरह वे वहां दाल- चावल खाकर अपना दिन गुजार रहे थे। लेकिन एक दिन ऐसा भी आया जब उनके पास के पैसे खत्म हो गये। उन्होंने कंपनी से सहायता मांगी लेकिन नहीं मिला। कठिनाइयों को सहन करने में असमर्थ, उन्होंने राज्य के नोडल अधिकारी से संपर्क किया। कथित तौर पर प्रवासी कामगारों को पुलिस ने पीटा और उन्हें वहां से भगा दिया। किसी ने भी उनकी मदद नहीं की। कोई रास्ता न देख वे 4 मई को पैदल ही तेलंगाना सीमा पर पहुंच गए। पुलिस ने उन्हें आगे बढ़ने से रोक दिया। रोने गिड़गिराने पर उनके स्वास्थ्य की जाँच थर्मल गानों से करने के बाद उन्हें आगे बढञने की अनुमति मिल गई। पुलिस की मदद से उन्होंने 40 हजार रुपये में एक लॉरी किराए पर ली और रविवार सुबह खड़गपुर पहुंच गयें। हाथ में पैसे नहीं होने के कारण, उन्होंने खड़गपुर से पैदल चलकर मालदा अपने घर लौटने का फैसला किया। भूखे-प्यासे लोग चले जा रहे थे. धूप होने के कारण सभी थक गये थे।
दोपहर में, डोमजुर के निबरा में राष्ट्रीय राजमार्ग संख्या 6 पर वे आगे बढ़ रहे थे। कुछ स्थानीय लोगों के प्रयासों से उनके खाने-पीने की व्यवस्था की गई। बाद में, जब राज्य के सहकारिता मंत्री अरूप रॉय ने इसके बारे में सुना, तो उन्होंने दो बसों की व्यवस्था की। इसके अलावा, प्रवासी श्रमिकों के लिए खाने- पीने की व्यवस्था की गई थी। दोनों बसें से उन्हें रविवार दोपहर को ही मालदा के लिए रवाना कर दिया गया। प्रवासी कर्मचारी सरकारी प्रबंधन के तहत घर लौटने से खुश हैं।
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