इतिहास के पन्ने पलटें तो बंगाल में मारवाड़ी समाज के बंगाल में आगमन का इतिहास भी लगभग 425 साल से अधिक पुराना है। 1595 में पहली बार मारवाड़ी अकबर के शासनकाल में उनके सेनापति राजा मान सिंह के काफिले के साथ बंगाल आये थे और तब से अब तक मारवाड़ियों ने इस राज्य के विकास में जो अवदान दिया है वह किसी से छुपा नहीं है। कोलकाता महानगर की स्थापन से पहले से मारवाड़ी यहाँ मौजूद थे।
मारवाड़ियों ने अर्थबल से व्यापार- वाणिज्य को आगे बढ़ाकर पश्चिम बंगाल की उन्नति में सहभागिता की है। छोटे-मोटे व्यापार से लेकर उद्योगों के संचालन तक, आवासीय परिसरों के निर्माण से लेकर बड़े-बड़े शिक्षण संस्थान तक, दातव्य चिकित्सालय से लेकर विशेषज्ञ अस्पताल तक सबमें मारवाड़ी समाज अग्रणी रहा है। जुट मिलों- कारखानों में मज़दूर, खेतों में किसान और बाज़ार में जहां कहीं व्यापारिक गतिविधि है मारवाड़ी किसी न किसी रूप में मौजूद हैं।
समाज सेवा के क्षेत्र में तो इस समाज की कोई सानी नहीं है। पूरे राज्य में समाज सेवा के जो भी कार्य होते हैं कहीं न कहीं इस समाज की उपस्थिति अवश्य रहती है। सिद्धांततः मारवाड़ी अपनी आय का एक निश्चित हिस्सा हमेशा समाज कल्याण के लिए खर्च करता रहा है, संकट के समय इस समाज की दानशीलता हमेशा से दूसरे समाजों के लिए अनुकरणीय, प्रेरणीय रही है। अभी भी कोरोना संकर के समय मारवाड़ी न सिर्फ कलकत्ता बल्कि सुदूर गांवों तक में सेवा की मिसाल पेश कर रहा है।
पश्चिम बंगाल की त्रासदी यह है कि यहाँ के नेता तुच्छ स्वार्थों और वोट के ध्रुबीकरण के लिए घृणा की राजनीति पर उतर आये हैं जो इस राज्य के भविष्य के लिए अशुभ संकेत है। पहले भी एक बार वाम शासन के समय मंत्री अब्दुल रज्जाक मोल्ला ने मारवाड़ियों को लेकर कटु शब्द कहे थे और बाद में सुधार किया था। फिर एक बार राज्य के सत्तासीन दल के नेता ने मारवाड़ियों को लेकर गलत टिपण्णी की है और हंगामा खड़ा हो गया है।
राज्य अभी कोरोना के दंश से अस्त-व्यस्त है। सरकार अपने सीमित संसाधनों के साथ कोरोना से लड़ रही है बाकी लोगों के भोजन का प्रबंध जिन गैर-सरकारी संस्थानों ने उठा रखा है उनमें से अधिकांशतः मारवाड़ियों द्वारा संचालित है। बिना किसी भेदभाव, संकीर्णता के मारवाड़ी समाज के लोग सरकार और प्रशासन से मिलकर लोगों को सुविधा पहुंचने के काम में डंटे हुए हैं।
यह राज्य तभी तेज़ी से विकास कर सकेगा जब इसके वर्तमान स्वरुप को बरकरार रखते हुए सभी क्षेत्र के लोगों को प्रोत्साहित किया जाएगा। एक समय था जब राज्य विधानसभा में 16 हिन्दीभाषी विधायक हुआ करते थे। ईश्वरदास जालान राज्य विधानसभा के अध्यक्ष बने थे। विजय सिंह नाहर को उपमुख्यमंत्री बनने का गौरव हासिल हुआ था। रामकृष्ण सरावगी मंत्री पद पर सुशोभित हुए थे।
राज्य सरकार को चाहिए कि ऐसे किसी भी व्यक्ति को, जो मारवाड़ी समाज के विरुद्ध गलतबयानी करता है, तत्काल बर्खास्त करे और उसे यह एहसास दिलाये कि संकीर्णता सामाजिक विकास की धारा को बाधित करती है।