कलकत्ता HC का ममता सरकार को झटका, कहा- हटाएं नागरिकता कानून लागू ना करने वाले विज्ञापन


कलकत्ता हाईकोर्ट ने बंगाल सरकार को नागरिकता संशोधन कानून (सीएए) से संबंधित अपने सभी विज्ञापनों को बंद करने का निर्देश दिया है. मुख्य न्यायाधीश टीबीएन राधाकृष्णन और न्यायाधीश अरिजीत बनर्जी की खंडपीठ ने इस मामले में दायर की गई जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए साफ तौर पर कहा कि सरकारी रुपये से सीएए और राष्ट्रीय नागरिक पंजी (एनआरसी) के खिलाफ कहीं किसी तरह का विज्ञापन नहीं दिया जा सकता.

मामले में अदालत के अंतिम फैसले तक उन सबको बंद किया जाए. गौरतलब है कि राज्य सरकार की ओर से सीएए-एनआरसी के विरोध में विज्ञापनों के प्रसार पर हाईकोर्ट में जनहित याचिका दायर कर सवाल किया गया था कि मुख्यमंत्री जैसे संवैधानिक पद पर आसीन होते हुए ममता बनर्जी राष्ट्रपति के हस्ताक्षर से बने कानून का कैसे विरोध कर सकती हैं?

यह भी प्रश्न किया गया था कि जब सरकार की ओर से एनआरसी-सीएए को लेकर बंगाल में हालात सामान्य होने की बात कही जा रही है तो फिर राज्य के विभिन्न इलाकों में इंटरनेट सेवा बंद क्यों हैं? इस दिन मामले पर सुनवाई के दौरान राज्य के महाधिवक्ता ने कहा कि विज्ञापनों पर रोक लगा दी गई है और इंटरनेट सेवा भी बहाल हो गई है. इसके बाद मुख्य न्यायाधीश ने यह निर्देश दिया. साथ ही वेबसाइट से भी इस तरह के सारे विज्ञापनों को हटाने का निर्देश दिया.

दूसरी तरफ रेलवे की ओर से एनआरसी-सीएए के विरोध-प्रदर्शन के दौरान नष्ट की गई उसकी संपत्तियों की क्षतिपूर्ति को लेकर दायर की गई याचिका पर हाईकोर्ट ने रेलवे से नुकसान का विस्तृत विवरण जमा करने को कहा. साथ ही यह भी पूछा कि इसके खिलाफ रेलवे की तरफ से क्या कदम उठाया गया है.

अदालत का आदेश तब भी आया जब भाजपा ने कोलकाता में संशोधित नागरिकता कानून के समर्थन में एक विशाल रैली आयोजित की. भाजपा सांसद जेपी नड्डा ने आज दोपहर कोलकाता में कानून के समर्थन में उतरे और रैली में हिस्सा ले रहे हैं. 

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कल भाजपा के दिल्ली चुनाव अभियान की शुरुआत करते हुए लोगों को आश्वस्त करने की कोशिश की कि देश में एनआरसी लागू करने की कोई बातचीत नहीं हुई है. उन्होंने कहा कि मैं भारत के 130 करोड़ नागरिकों को बताना चाहता हूं कि जब से मेरी सरकार सत्ता में आई है, 2014 के बाद से एनआरसी में कहीं भी कोई चर्चा नहीं हुई है. सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद ही असम के लिए यह कवायद की गई थी. 

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