After Ayodhya Verdict: अयोध्या की सांस्कृतिक सीमा के बाहर बने मस्जिद : व‍िश्‍व ह‍िन्दूू पर‍िषद


विहिप के अंतर्राष्ट्रीय संरक्षक दिनेशचंद्र ने मंदिर-मस्जिद विवाद पर शनिवार को आए फैसले का स्वागत करते हुए कहा, हम मस्जिद के लिए भूमि दिए जाने के निर्णय का भी स्वागत करते हैं पर यह मस्जिद अयोध्या की सांस्कृतिक सीमा के बाहर होनी चाहिए और बाबरी नाम की मस्जिद तो पूरे देश में कहीं भी स्वीकार्य नहीं होगी. वे रामघाट स्थित रामजन्मभूमि न्यास कार्यशाला में मीडिया से मुखातिब थे. हालांकि विहिप संरक्षक अयोध्या की सांस्कृतिक सीमा क्या है, इसे स्पष्ट नहीं कर सके और कहा कि संतों से विचार-विमर्श के बाद वे यह तय करेंगे कि अयोध्या की सांस्कृतिक सीमा कहां तक निर्धारित की जाय. उन्होंने रामजन्मभूमि का फैसला आने पर कृष्णजन्मभूमि और काशी विश्वनाथ मंदिर के विवाद पर चुप रहने की नसीहत को भी यह कहावत याद दिलाते हुए शिरोधार्य किया, एकै साधे सब सधै/ सब साधे सब जाय. 

इस मौके पर उन्होंने उन लोगों को नमन किया, जिन्होंने रामजन्मभूमि मुक्ति के लिए 1528 ई. से ही संघर्ष किया और शहादत दी. विहिप संरक्षक ने मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ से अयोध्या में इस संघर्ष और शहादत का स्मारक बनाने की भी मांग की. साथ ही स्पष्ट किया कि रामजन्मभूमि पर उन्हीं शिलाओं से मंदिर बने, जो यहां दशकों से तराशी जा रही हैं और उन्हें कोई ऐसा मंदिर नहीं स्वीकार होगा, जो रामजन्मभूमि न्यास की ओर से प्रस्तावित मंदिर के मॉडल से विलग हो.

उन्होंने कहा, न्यायिक आदेश के अनुरूप संभावित शासकीय न्यास में विहिप या रामजन्मभूमि न्यास को प्रतिनिधित्व मिल रहा है या नहीं, इससे फर्क नहीं पड़ता पर इससे कोई समझौता नहीं होगा कि मंदिर रामजन्मभूमि न्यास की ओर से प्रस्तावित मॉडल के अनुसार बने. विहिप संरक्षक ने लगे हाथ प्रस्तावित मंदिर की खूबियां भी बतायीं. कहा, हम लोगों ने बहुत विचारपूर्वक मंदिर का यह मॉडल और निर्माण के लिए ईंट-गारा की बजाय पत्थर का चयन किया था. इन शिलाओं की आयु कम से कम तीन सौ वर्ष है और इन्हें हजार-15 सौ वर्ष तक भी अक्षुण रखा जा सकता है. निर्णय आने के बाद विहिप की भूमिका के संबंध में उन्होंने कहा, हमारी भूमिका मंदिर निर्माण तक रहेगी. इस दौरान दिनेशचंद्र ने मंदिर के साथ संपूर्ण रामनगरी के प्रति सरोकार ज्ञापित किया. कहा, मुख्यमंत्री की ओर से अयोध्या में दुनिया की जो सबसे ऊंची भगवान राम की प्रतिमा लगाई जानी है, वह आशीर्वादात्मक मुद्रा में होगी पर इसमें यह भी सुनिश्चित हो कि प्रतिमा का मुख अयोध्या की ओर हो और वह आजानबाहु हो. उन्होंने अयोध्या में विश्व सांस्कृतिक शोध केंद्र विकसित करने पर भी बल दिया.

एक प्रश्न के उत्तर में उन्होंने रामालय ट्रस्ट के दावे को खारिज किया। कहा, मंदिर निर्माण के लिए सर्वाधिक प्रामाणिक प्रयास रामजन्मभूमि न्यास का रहा है. इस मौके पर संत समिति के अध्यक्ष महंत कन्हैयादास रामायणी, बड़ा भक्तमाल के महंत अवधेशदास, सद्गुरुसदन के महंत सियाकिशोरीशरण, हनुमानगढ़ी के पुजारी एवं पार्षद रमेशदास, महंत पवनकुमारदास, रामलला के सखा त्रिलोकीनाथ पांडेय, कारसेवकपुरम के प्रभारी शिवदास ङ्क्षसह, विहिप के विभाग संगठनमंत्री धीरेश्वर वर्मा, विपिन ङ्क्षसह बब्लू आदि मुख्य रूप से मौजूद रहे. 

पत्थरों की तराशी में अब तक 50 करोड़ का व्यय

राममंदिर के लिए रामजन्मभूमि न्यास के प्रयासों का जिक्र करते हुए विहिप के संरक्षक ने कहा, पत्थरों की तराशी में अब तक 50 करोड़ रुपये व्यय हो चुके हैं और इस धन से आधे से अधिक पत्थरों की तराशी हो चुकी है. उन्होंने उम्मीद जताई कि अगले दो-तीन वर्षों में मंदिर निर्माण पूरा हो जाएगा. आर्थिक सहयोग का एलान करने वाले संयम बरतें.

विहिप के संरक्षक ने उन लोगों से संयम बरतने की अपील की, जो राममंदिर के लिए आर्थिक सहयोग का एलान कर रहे हैं. उन्होंने कहा, पहले मंदिर निर्माण के लिए शासकीय ट्रस्ट का गठन होने दें. 

केंद्र सरकार तैयार करे मास्टर प्लान

विहिप के संरक्षक ने कहा, प्रस्तावित मंदिर तो सवा एकड़ के भूक्षेत्र में बनेगा पर कोर्ट के आदेशानुसार केंद्र सरकार 67.77 एकड़ के संपूर्ण अधिग्रहीत परिसर को ध्यान में रखकर मास्टर प्लान तैयार करे.

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