आपका जीवन आपका अधिकार है उसी तरह से पक्षियों का भी जीवन उनका अधिकार

 पक्षियों को मारना : अमानवीय और कानूनी अपराध 


संजय कुमार सहायक निदेशक प्रेस इन्फॉर्मेशन ब्यूरो, पटना

आज पृथ्वी पर कई जीवों के समक्ष जीवन का संकट गहरा गया है। कई तो विलुप्त हो गए हैं, तो कई क़तार में खड़े हैं। इसके लिए एक हद तक इन्सान और असंतुलित विकास जिम्मेदार हैं। इंसानों ने इकोसिस्टम, परिस्थितिकी तंत्र या पारितंत्र को तार-तार कर दिया है। इकोसिस्टम  यानि जीव-जन्तु, पौधे, पादप आदि प्रभावित हो रहे हैं। सभी जीव पर्यावरण में आपस में अंत:क्रिया करके एवं सामूहिक रूप से एक दूसरे पर आश्रित रहते हुए जीवन यापन करते हैं। देखा जाए तो इकोसिस्टम में पेड़-पौधे अपना भोजन सूर्य से प्राप्त करते हैं। मांसाहारी जीव दूसरे छोटे जीवों को मारकर उनका भक्षण करते हैं। सूक्ष्म जीव भी अन्य जीवो एवं अपशिष्ट पदार्थो से अपना भरण-पोषण करते हैं। साथ ही मनुष्य ने अपने अति विकास और फायदे के लिए वनों की कटाई, पर्यावरण प्रदूषण, जल-मृदा का दोहन आदि कर इकोसिस्टम को सबसे ज्यादा नुकसान पहुँचाया  है। ऐसे में बात पक्षियों कि करें तो मनुष्य ने मिथ्या स्वाद और शान-शौकत के लिए पक्षियों के अस्तित्व को खतरे में डाल दिया है। देखा जाये तो इकोसिस्टम  में  पक्षियों का रहना मानव जीवन के लिए बहुत महत्व रखता है ।


हालाँकि, पक्षी इंसान के बिना रह सकते हैं। मगर इंसान का अस्तित्व पक्षियों के बिना मुश्किल है। मंदार नेचर क्लब, भागलपुर के संस्थापक, स्टेट कोऑर्डिनेटर, इंडियन बर्ड कंजेर्वेशन नेटवर्क (।BCN) बिहार और चर्चित गरुड़ संरक्षक अरविन्द मिश्रा इस मुद्दे पर कहते हैं, पक्षियों का हमारे जीवन में क्या महत्व है, हम सब जानते हैं, लेकिन स्वीकार नहीं करते हैं।  क्या हम इस बात से इन्कार कर सकते हैं कि जब इलाके में महामारी फैलती है तो इसकी अग्रिम सूचना हमें इन पक्षियों के माध्यम से मिल जाती है ? आंधी-तूफ़ान और अन्य प्राकृतिक आपदाओं के पहले ही पक्षियों के व्यवहार में फर्क आ जाता है और अगर हम इन बातों पर नजर रखें तो पहले से ही सावधानी बरत कर अपने जान-माल की सुरक्षा कर सकते हैं । चूहे और कीट-पतिंगों को खाकर ये पक्षी हमारी फसल की सुरक्षा करते हैं, जंगल में गिद्धों को मंडराते देख हम आस-पास शेर के होने की संभावनाओं का पता लगाते हैं, अगर पक्षी बीजों का वितरण न करें या फूलों का परागण न करें तो हमारे जंगल और बगिया से न जाने कितने पेड़-पौधे विलुप्त हो जायंगे।  


बात भी सही है कौओं  के  जैसे  पक्षी  न  हों  तो  टीबी  और  गन्दगी से उपजने वाली जानलेवा बीमारियाँ हमें लील लेंगी। बतख और अन्य जल-पक्षी यदि हर साल बड़ी संख्या में आकर खर-पतवारों को खाकर हमारे झीलों-तालाबों की सफाई न करें तो ये झील और तालाब जमीन बन जायंगे और हम एक-एक बूँद पानी तथा खेती को तरस जायंगे । यानि ये इकोसिस्टम के इंजीनियर है। 

अरविंद मिश्रा की माने तो पक्षियों के हमारे जीवन पर बहुत अहसान है। मगर हम क्या कर रहे हैं इन मेहमानों के साथ ? बतख, बघेरी, चहा, तीतर, बटेर सब को खा जा रहे हैं। कुछ घुमंतू जाति के लोग तो जलमुर्गी, मैना और बगुलों को भी भरदम खा-पका रहे हैं। नदियों की धार और टीलों पर, जलाशयों और खेतों में हवा में जाल टांग कर पक्षियों का शिकार किया जा रहा है। यदि शिकारियों से पूछा जाय तो वे इन पक्षियों की प्रजातियों की भी सही पहचान नहीं बता पाएँगे । अब तो इन शिकारियों की हवस इतनी बढ़ गई है कि पानी में पत्तों पर बीजों में या अनाज के दानों में थाईमेट/ फ्यूराडोन का जहर तैरा कर छोड़ देते हैं, अनाज के दानों में यह जहर मिलाकर बालू पर छींट देते हैं और एक साथ सैकड़ों-सैकड़ों पक्षियों को समेट लेते हैं । शिकार की इस गति को देखकर यह लगता है कि सुदूर विदेशों से बड़ी संख्या में आने वाले प्रवासी पक्षियों में से थोड़े-बहुत भी अपने देश के मूल निवास स्थान में वापस नहीं जा पायंगे। 

पक्षियों को सड़क किनारे हाथों में लटका कर मुसाफिरों को बेचने का सिलसिला चोरी छिपे जारी है।यही नहीं दूर गाँव और शहरों में भी इन पक्षियों की आपूर्ति की जा रही है । ये लोग लालसर, चकवा, अधंगा बोलकर जाने क्या-क्या बेच रहे हैं, पक्षी विशेषज्ञ अरविंद मिश्रा कहते हैं शिकारियों को भी पता नहीं है कि बतख की प्रजाति “गुलाब सर” को सन 1935 में आख़िरी बार उत्तर बिहार में देखा गया था जिसके बाद इसे विलुप्त मान लिया गया है। परन्तु कितने “गुलाब सर” और अन्य विलुप्तप्राय पक्षी इन शिकारियों ने चंद रुपयों के लिए बेच दिए होंगे क्या पता ? यह एक घोर चिंता का विषय है । 

सुग्गा (तोता), मुनिया, मैना और बाज़ जैसे पक्षियों को पिंजरों में कैद कर देश भर में बेचा जा रहा है । शौक के लिए मनुष्य इन्हें खरीदते हैं और  स्वछन्द विचरने वाले चिड़ियों की आजादी छीन लेते हैं। स्वछन्द विचरने वाले  सारे पक्षी चाहे अपने देश के हों अथवा विदेश से आते हों, उनको मारना, पकड़ना, खरीदना, बेचना, तंग करना, उनके आवास/अधिवास को नष्ट करना, उनके प्रजनन को बाधित करना, उनके अंडे-बच्चों को नुकसान पहुँचाना जैसे सारे कार्य हमारे देश में दण्डनीय अपराध है। इसके लिए “वन्य-प्राणी संरक्षण अधिनियम 1972” में क़ानूनी प्रावधान है। इसके अनुसूची-1 तथा अनुसूची-2 के द्वितीय भाग वन्यजीवन को पूर्ण सुरक्षा प्रदान करते  हैं । इनके तहत अपराधों के लिए उच्चतम दंड निर्धारित है। अनुसूची-3 और अनुसूची-4  भी  संरक्षण  प्रदान  करते  हैं।स्वच्छंद विचरने वाले सभी वन्य प्राणियों को हमारे देश में कानूनी संरक्षण प्राप्त है।



अरविन्द मिश्रा कहते हैं, पक्षियों के संरक्षण के लिए “वन्य-प्राणी संरक्षण अधिनियम 1972” जैसे सख्त कानून लागू हैं। लेकिन जरुरी है कि हर प्रशासनिक अधिकारी का कर्तव्य हो कि इन कानूनों का कड़ाई से पालन हो । इस कानून में गैर जमानतीय गिरफ्तारी, 7 साल की सजा और पचीस हजार रुपए और इससे भी ज्यादा भारी आर्थिक दण्ड का प्रावधान है ।

वहीं आम नागरिक की भूमिका भी पक्षियों के संरक्षण के लिये अहम है। कोई भी नागरिक इन पक्षियों की सुरक्षा के लिए आवश्यक कदम उठा सकता है, क्योंकि हमारे संविधान की धारा 51-A(g) में भी इसे प्रत्येक नागरिक का कर्तव्य बताया गया है । 

दूसरी ओर “बर्ड फ्लू” के मद्देनजर भी बाहरी देशों से आने वाले पक्षियों के माध्यम से ये शिकारी, व्यापारी, खरीदार और इनको खाने वाले अपने लिए भी खतरा मोल ले रहे हैं और इस बीमारी को फ़ैलाने में भी अपनी भूमिका निभा रहे हैं । आइए, हम इन पक्षियों की रखवाली कर अपने जीवन को जीवंत बनाए रखें और अपराधी होने की आत्मग्लानि से बचे रहें । क्योंकि जिस तरह से आपका जीवन आपका अधिकार है उसी तरह से पक्षियों का भी जीवन उनका अधिकार है।  

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