प्रधान सम्पादक सुधांशु शेखर की टिप्पणी - सन्दर्भ: 'कोरोना काल में व्यापार'
पिछले साल की शुरुआत से चल रहे कोरोना के कहर से पूरी दुनिया तबाह है.बड़ी संख्या में जन हानि तो हुई ही है, देश की अर्थव्यवस्था पर इसका भारी असर हुआ है.सरकारों के सामने भी समस्या रही है कि वे व्यापार व वाणिज्य खुला रखें तो कोरोना उफनने लगता है और ये गतिविधियां बंद रखें तो मंदी और बेरोजगारी का दंश झेलना पड़ता है.पूरे देश की तरह बंगाल के व्यापारियों को भी पिछले दो साल से काफी कुछ झेलना पड़ रहा है.सरकार ने ऑनलाइन व्यापार की अनुमति दी है, पर यह सामान्य ब्रिक्री की तुलना में काफी नगण्य है.ऐसे प्रतिकूल हालात में भी बंगाल की सीएम ममता बनर्जी कहती हैं कि आप अपनी ओर से अपने कर्मचारियों के टीकाकरण की पहल करें. कोरोना ने आम जनता व मध्यवर्ग के साथ ही व्यापारी वर्ग की भी कमर तोड़ी है, ऐसे में पूरे राज्य की जनता को फ्री में वैक्सीन देने का वादा करने वाली सीएम सोचती है कि टीका खर्च भी व्यापारियों को ही उठाना चाहिए.
सरकार की सोच कितनी अव्यावहारिक है, इसका अंदाजा एक फैसले से लगाया जा सकता है.सरकार ने हाल में पाबंदियों को 30 जून तक के लिए बढ़ाया है.सरकारी कार्यालयों के साथ निजी कार्यालय भी कम संख्या में कर्मचारियों हाजिरी से चलाने का फैसला लिया.आवश्यक सेवाओं की दुकानें भी खोलने की अनुमति है, मगर महानगर में आम परिवहन सेवा एकदम बंद है.इन आवश्यक सेवाओं की दुकानों में कर्मचारी कैसे काम में आयेंगे, इस बारे सरकार सोच भी नहीं पायी.जिनके पास बाइक या अपनी कार नहीं है, वे क्या उपनगरों से 10-20 मील साइकिल चलाकर महानगर आ सकते हैं?
इस कोरोना काल में भी सरकारों लगता है कि व्यापारी ‘कर चोरी’ करते ही करते हैं.राष्ट्रपिता महात्मा गांधी खुद के बनिया समुदाय से होने पर गर्व महसूस करते थे लेकिन एक आम अवधारणा है कि व्यापारी वर्ग ईमानदार नहीं होता, हालांकि जीएसटी आने से कर चोरी के बहुत सारे रास्ते बंद हा गये हैं. देश की अर्थव्यवस्था में कारोबारी समुदाय के योगदान को महसूस किये बिना ही सभी को चोर बता दिया जाता है.ऐसे लोग न इतिहास से अवगत है और न ही जमीनी हकीकत से। देश के विकास में व्यापारियों के योगदान को झुठलाया नहीं जा सकता. इस वजह से व्यापारी वर्ग भी इस संकट की घड़ी में विशेष पैकेज का हकदार है. हालांकि भाजपा के नेतृत्व वाली केन्द्र की राजग सरकार ने पिछले सालों के दौरान व्यापारियों की जिंदगी और कारोबार को सरल बनाने के लिये काफी काम किया। पुराने पड़ चुके 1,500 कानून को समाप्त किया गया, प्रक्रियाओं को सुगम बनाया गया तथा आसान कर्ज उपलब्ध कराया गया। व्यापारी भारतीय अर्थव्यवस्था की रीढ़ हैं लेकिन पूर्व में उन्हें वह सम्मान नहीं मिला जिसके वे हकदार थे। अर्थव्यवस्था के आकार को दोगुना कर 5,000 अरब डालर करने का लक्ष्य उनके योगदान के बिना संभव नहीं है.
सरकार ने ऑनलाइन व्यापार की अनुमति दी है, पर यह सामान्य ब्रिक्री की तुलना में काफी नगण्य है.ऐसे प्रतिकूल हालात में भी बंगाल की सीएम ममता बनर्जी कहती हैं कि आप अपनी ओर से अपने कर्मचारियों के टीकाकरण की पहल करें. कोरोना ने आम जनता व मध्यवर्ग के साथ ही व्यापारी वर्ग की भी कमर तोड़ी है, ऐसे में पूरे राज्य की जनता को फ्री में वैक्सीन देने का वादा करने वाली सीएम सोचती हैं कि टीका खर्च भी व्यापारियों को ही उठाना चाहिए.
इसी साल 8 फरवरी से 10 फरवरी तक नागपुर में सीएआईटी का राष्ट्रीय व्यापार सम्मेलन हुआ। इस सम्मेलन में देश के सभी राज्यों के 200 से अधिक प्रमुख व्यापारी नेताओं ने संयुक्त रूप से लिया व भारत व्यापार बंद का फैसला लिया। वस्तु एवं सेवा कर यानी जीएसटी के जीएसटी के विकृत रूप के खिलाफ ट्रांसपोर्ट सेक्टर के सबसे बड़े संगठन ऑल इंडिया ट्रांसपोर्ट वेलफेयर एसोसिएशन ने 26 फरवरी को देश भर में चक्का जाम किया।जीएसटी काउंसिल पर जीएसटी के स्वरूप को अपने फायदे के लिए विकृत करने का आरोप लगाया गया। जीएसटी पूरी तरह से एक फेल कर प्रणाली बताया गया। कहा गया कि जीएसटी का जो मूल स्वरूप है, उसके साथ खिलवाड़ किया गया है। सभी राज्य सरकारें अपने निहित स्वार्थों के प्रति ज्यादा चिंतित हैं और उन्हें कर प्रणाली के सरलीकरण की कोई चिंता नहीं है। देश के व्यापारी व्यापार करने की बजाय जीएसटी के अनुपालन में दिन भर जुटे रहते हैं, जो देश की अर्थव्यवस्था के लिए विपरीत स्थिति है.
937 से ज्यादा बार हो चुका संशोधन
ऐसे में जीएसटी के वर्तमान स्वरूप पर नए सिरे से विचार करने की जरूरत है। चार वर्ष में लगभग 937 से ज्यादा बार संशोधन होने के बाद जीएसटी जा बुनियादी ढांचा ही बदल गया है। बार-बार कहने के बावजूद जीएसटी काउसिंल ने अभी तक कैट द्वारा उठाए गए मुद्दों का कोई संज्ञान नहीं लिया है. इसलिए व्यापारियों द्वारा अपनी बातों को देश भर के लोगों तक पहुंचाने के लिए भारत व्यापार बंद का ऐलान किया गया है।जीएसटी लागू हुए करीब चार साल हो गए हैं। जीएसटी के नियमों में 1400 से ज्यादा बार बदलाव किए जा चुके हैं। जब तक पुराने नियम माहिरों व व्यापारियों को समझ में आते हैं इतनी देर में नए नियम आ जाते हैं.
बीते कुछ दिनों के दौरान अलग-अलग सेक्शन में कई तरह की नई अमेंडमेंट कर दी गयी हैं। इसमें जीएसटी रजिस्ट्रेशन करवाने का नियम-9, नियम 21, सेक्शन-16, 21 ए, 36 (4), 59 (5), 86 (बी) और नियम 138 शामिल है। इसको लेकर जीएसटीपीए की ओर से अधिकारियों के साथ मिलकर इन्हें सरल करने की मांग की गई. जीएसटीपीए के प्रधान एडवोकेट नवीन सहगल व उपप्रधान विकास खन्ना के मुताबिक ये सारे बदलाव फर्जी लोगों को पकड़ने के लिए हुए हैं, मगर इसका शिकार वे हो रहे हैं, जो व्यापारी पूरी तरह से सही और समय पर टैक्स अदा भी करते हैं। उन्होंने बताया कि मौजूदा समय में सरकार की टैक्स कलेक्शन कम है और चोरी ज्यादा है। जीएसटी रजिस्ट्रेशन करवाने के दो तरीके हैं, जिसमें पहला आधार के साथ और दूसरा बिना आधार कार्ड के। अगर आधार कार्ड के जरिए रजिस्ट्रेशन करवाते हैं तो उसके लिए पहले तीन दिन थे, जोकि बढ़ाकर सात दिन कर दिए हैं। बिना आधार कार्ड के पहले सात दिन का समय था। अब बढ़ाकर 30 दिन कर दिया है। ऐसे में जिस किसी ने भी नई रजिस्ट्रेशन करवानी होगी, अगर उसके आधार में किसी तरह की परेशानी आती है तो कम से कम 30 दिन का इंतजार करना होगा। सबसे ज्यादा मुश्किल ई-वे बिल की लिमिट को लेकर है। ई-वे बिल की लिमिट एक दिन में 100 किलोमीटर से बढ़ाकर 200 किलोमीटर कर दी है। अब व्यापारी को 200 किलोमीटर के दायरे में काटे गए ई-वे बिल को उस दिन हर हाल में डिलीवर करना होगा। इसको लेकर व्यापारी परेशान हैं। अगर एक दिन से डिलीवरी लेट होती है तो विभाग के अधिकारी बिना कारण ही उन्हें परेशान कर रहे हैं.
सरकार की सोच कितनी अव्यावहारिक है, इसका अंदाजा एक फैसले से लगाया जा सकता है.सरकार ने हाल में पाबंदियों को 30 जून तक के लिए बढ़ाया है.सरकारी कार्यालयों के साथ निजी कार्यालय भी कम संख्या में कर्मचारियों हाजिरी से चलाने का फैसला लिया.आवश्यक सेवाओं की दुकानें भी खोलने की अनुमति है, मगर महानगर में आम परिवहन सेवा एकदम बंद है.इन आवश्यक सेवाओं की दुकानों में कर्मचारी कैसे काम में आयेंगे, इस बारे सरकार सोच भी नहीं पायी.जिनके पास बाइक या अपनी कार नहीं है, वे क्या उपनगरों से 10-20 मील पैदल या साइकिल चलाकर महानगर आ सकते हैं.
इसी तरह नियम 21 ए मे रजिस्ट्रेशन रद करने के लिए अधिकारियों की पावर बढ़ा दी है। अगर कोई व्यापारी 86 बी का उल्लंघन करता है तो जीएसटीआर 3 बी में कम दिखाता है तो अधिकारियों के पास यह अधिकार होगा कि बिना मौका दिए रजिस्ट्रेशन को रद कर दें या सस्पेंड कर दें। साथ ही अधिकारी नोटिस भेजते है, जिसका स्पष्टीकरण सात दिन में देना होगा। अधिकारी अपना काम करने के लिए तो 30 दिन का समय लेते हैं, मगर व्यापारियों को सपष्टीकरण देने के लिए केवल सात दिन दे रहे हैं।इसी तरह सेक्शन 34 (4) में आइटीसी को 10 प्रतिशत से कम करके पांच प्रतिशत कर दिया है। सेक्शन 59 (5) में जीएसटीआर-1 को ब्लाक करने के अधिकार दे दिए हैं। इसमें अगर कोई व्यापारी लगातार दो जीएसटीआर 3बी ड्राप करता तो जीएसटीआर-1 ब्लाक हो जाएगी। साथ ही सेक्शन 86 बी में अगर किसी व्यापारी की महीने की सेल 50 लाख से ज्यादा है तो वह अपना आइटीसी केवल 99 प्रतिशत ही क्लेम कर सकता है। जबकि एक प्रतिशत उसे अपनी जेब से अदा करना होगा.
व्यापारियों की जीएसटी से जुड़ी समस्याएं:
- अगर विभाग की ओर से माल जब्त किया जाता है और वह टैक्सेबल माल है तो 100 फीसदी की जगह 200 परसेंट जुर्माना देना होगा.
- 2 महीने का जीएसटीआर-3बी फाइल नहीं किया तो ई वे बिल जेनरेट नहीं कर सकेंगे.
-इलेक्ट्रानिक कैश लेजर से पेमेंट करना पड़ेगा.
- अगर जब्ती के खिलाफ अपील करनी है तो 25 परसेंट पैनाल्टी पहले भरे फिर अपील करें.
- 100 करोड़ से ज्यादा टर्नओवर वाले कारोबारियों को ई इनवाइस अनिवार्य । ऐसा नहीं करने पर क्रेडिट नहीं.
- ई वे बिल की एक दिन की लिमिट 200 किमी कर दी गई जो संभव नहीं है.
- रिटर्न मिस - मैच टैक्स वसूला जाना, जीएसटी रजिस्ट्रेशन नंबर कैंसिल करने का प्रावधान
बजट के बाद से जीएसटी में किए गए कुछ प्रावधानों से छोटे व्यापारियों की परेशानी बढ़ गई है। इन प्रावधानों से इंस्पेक्टर राज को बढ़ावा मिलेगा। व्यापारियों का उत्पीड़न होगा।इस साल जीएसटी में जो नए प्रावधान किए गए हैं। उनके तहत कार्रवाई शुरू हो गई है। व्यापारियों के खिलाफ एफआईआर भी हो रही हैं। टैक्स पेमेंट में देरी की वजह से व्यापारियों के खाते भी सीज किए जा रहे हैं। जो सही नहीं है।जीएसटी लागू होने के बाद से अब तक सैकड़ों बार नियमों में अमेंडमेंट हो चुका है। यह सरल की बजाय अब कठिन टैक्स प्रणाली बन गई है। व्यापारी और उद्यमी व्यापार कम टैक्स का हिसाब किताब ज्यादा रख रहा है।जीएसटी में ई वे बिल को लेकर जो नए प्रावधान किए गए हैं उससे ट्रांसपोर्टर्स और व्यापारी दोनों की परेशानी बढ़ गई है। एक दिन में दो सौ किमी तक माल डिलीवरी की लिमिट व्यवहारिक नहीं है.
अब जीएसटी भारत की अर्थव्यवस्था के लिए एक अनिवार्यता है और पूरी अर्थव्यवस्था व्यवहारिक रूप से जीएसटी की सफलता पर ही निर्भर है लेकिन इस समय जीएसटी के सम्बन्ध में जो स्थिति चल रही है उससे भारतवर्ष के व्यापारी वर्ग की हालत अब असहनीय हो गई है और उनकी परेशानियां अब बढ़ती ही जा रही है इसलिए अब सरकार को चाहिए कि वह इन समस्याओं पर ध्यान दे और इसके लिए सुधारात्मक कदम उठाये अन्यथा जीएसटी भारतीय उद्योग एवं व्यापार के लिए एक दीर्घकालीन समस्या बनकर इसे नुकन पहुचायेगा. समस्याओं के कारण अब हो यह रहा है कि डीलर्स को लगातार नोटिस मिल तहे है और उनको उनके ना सिर्फ जवाब देने पड़ रहे हैं लेकिन सबसे बड़ा ख़तरा यह है कि सरलीकरण के नाम पर लाया गया यह कर अब कानूनी मसलों में जाकर उलझ जायगा और इसका सबसे बड़ा खमियाजा केवल और केवल करदाता को उठाना पड़ेगा.
जीएसटी में अधिकाँश समस्याएं इस बात के कारण है कि तकनीकी भूलों को सुधार करने की कोई प्रभावी सुविधा नहीं है और प्राम्भ से ही जीएसटी को इतनी सख्ती के साथ बनाया गया जिससे यह लगता है कि हमारे कानून निर्माताओं ने उस समय यह मान लिया था कि डीलर्स और प्रोफेशनल्स कोई “रोबोट” है और वे कोई गलती कर ही नहीं सकते और इसी कारण से इतनी सख्त प्रक्रियाएं बनाने के बाद भी गलती होने पर सुधार की कोई गुंजाइश ही नहीं रखी गई और यही एक कानून निमाताओं की भूल व्यापार एवं उद्योग के लिए मुसीबत बन गई है.
जीएसटी एक नया कर है और भारत के उद्योग एवं व्यापार ने इसके पालन करने में पूरी मेहनत और ईमानदारी से सहयोग दिया है लेकिन कर नया होने के कारण इसके पालन में प्रारम्भिक समय में उद्योग एवं व्यापार से काफी तकनीकी गलतियाँ हुई है लेकिन इस प्रकार की तकनीकी गलतियों में किसी भी प्रकार की कर चोरी की भावना नहीं होती है लेकिन चूँकि जीएसटी के प्रमुख रिटर्न जीएसटीआर -3 बी में गलती के संशोधन का कोई प्रावधान नहीं था तो ये गलतियों सुधर ही नहीं सकी और इस समय जीएसटी के प्रारम्भिक दौर में ही ये गलतियां अब गंभीर रूप ले चुकी है इनके लिए सरकार को अब कोई सुधार का तरीका निकलना होगा.
जीएसटी से पहले जो अप्रत्यक्ष कर का कानून था जिसके सरलीकरण के लिए जीएसटी लाया गया था उस कानून में जिसमें सर्विस टैक्स , वेट और सेंट्रल एक्साइज भी शामिल थे में भी रिटर्न को संशोधत करने की सुविधा थी , आयकर का रिटर्न भी संशोधित हो सकता है फिर जीएसटी कर जो कि सरलीकरण के लिए लाया गया था उसमें इस तरह का असुविधाजनक प्रतिबन्ध लगाने का कोई तर्क नहीं है और यदि जीएसटी के रिटर्न संशोधित करने का प्रावधान कर दिया जाए तो जीएसटी के रिटर्न एवं कर निर्धारण में होने वाली अधिकांश समस्याएं हल हो जायेंगी . आप इस समस्या पर विशेषज्ञ राय भी लें कि बिना रिटर्न संशोधित किये कई तरह की समस्याएं हल ही नहीं हो सकती है और ये सभी समस्याएं हल हुए बिना वार्षिक रिटर्न्स भी कर निर्धारण में अधिकारियों की कोई मदद नहीं कर पायेंगे और इसके अभाव में सारे कर निर्धारण नोटिस जारी करने के बाद ही होंगे जो कि जीएसटी के सरलीकरण के सिद्धांत के विरुद्ध होगा.
इस तरह की तकनीकी त्रुटियों को दूर करने का उद्योग एवं व्यापार को यदि एक मौक़ा दिया जाये तो जीएसटी से सम्बंधित अनेक समस्याएं हल हो सकती हैं.सकल कर दायित्व पर ब्याज का भुगतान का मामला भी व्यापार एवं उद्योग को परेशान कर रहा है . देरी से रिटर्न भरने पर ब्याज तो केवल नगद में जमा कराए जाने वाले बकाया कर ही होना चाहिए ना कि सकल कर पर. स्वयम जीएसटी कौंसिल और सरकार भी इस विचार से सहमत नही है इसीलिये सरकार ने इस सम्बन्ध में संशोधन प्रस्ताव भी दिया है लेकिन वह भी अभी लंबित ही है और इसे सरकार शीघ्र ही इसे एक जुलाई 2017 के भूतलक्षी प्रभाव से लागू कर व्यापार एवं उधोग को इस परेशानी से छुटकारा दिलाएं जो कि सरकार के ही के कानून के अतार्किक प्रावधान के कारण उत्पन्न हुई है. जो राशि सरकार के खजाने में आ चुकी है उस पर ब्याज लगाने का ना तो कोई औचित्य है ना ही कोई व्यवहारिक और आर्थिक तार्किकता और इस तरह से यह व्यापारिक वर्ग पर एक अनुचित बोझ है.जीएसटी कानून भारत में एक सरल अप्रत्यक्ष कर कानून लाने के लिए लाया गया था लेकिन यह एक नया कानून था और गलतियां और देरी भी सभी पक्षों के द्वारा किया जाना स्वाभाविक है अब इसके लिए इस तरह से दंड दिया जाये तो फिर इसे नए कानून को सीखने का समय तो कानन निर्माताओं ने डीलर्स को दिया ही नहीं जो कि एक नए कर के लिए जरुरी था.
जीएसटी एक नया कानून है तो इसका अर्थ यह नहीं है कि इसे बनाते समय कार कानूनों के साथ जुड़े मूल सिद्धांतों को ही भुला दिया जाए जैसा कि जीएसटी में कर के भुगतान को लेकर किया गया है. जीएसटी में कोई भी व्यापारी जिस समय अपने कर का बैंक द्वारा भुगतान कर देता है उसी समय सरकार को यह कर प्राप्त हो जाता है तो फिर जब व्यापारी उसे जिस तिथी को सेट ऑफ करे उस तिथी तक ब्याज लगाने के पीछे भी कोई तर्क नहीं है और इस प्रावधान ने भी व्यापारी वर्ग को बहुत परेशान कर रखा है . इस तरह की “कागजी मांग” खड़ी करना वह भी इस समय जब कि जीएसटी खुद ही प्रयोगात्मक दौर से गुजर रहा है व्यापारी वर्ग पर बोझ डालने का कोई तर्क नहीं है.जो पैसा कर के रूप में सरकार को मिल चुका है उस पर सिर्फ इसलिए ब्याज लगा देना कि उसे सेट ऑफ नहीं किया है ,जो कि एक तकनीकी खामी है, उचित भी नहीं है और व्यवहारिक भी नहीं है .आयकर कानून में भी जो रकम चालान के द्वारा बैंक में जमा करा दी जाती है उसी तारीख से ही इसे जमा मान लिया जाता है और इसी तरह से ही जीएसटी में भी बैंक में राशि जमा करा देने से इसे जमा मान लिया जाए. वेट और सर्विस टैक्स में भी यही होता था तो अब इसे जीएसटी में लागू करने में कोई अड़चन नहीं होनी चाहिए.
जीएसटी पूर्ण रूप से एक सुचना तकनीक पर आधारित कर है और इसलिए जीएसटी की सफलता पूरी तरह से जीएसटी नेटवर्क और उसके सेवा प्रदाताओं की तकनीकी क्षमता पर आधारित है और जीएसटी का दुर्भाग्य यह रहा है जीएसटी का नेटवर्क जीएसटी लागू होने के बाद कभी भी अच्छी तरह से काम नहीं कर पाया है और जीएसटी की अधिकांश परेशानियों का कारण यही जीएसटी नेटवर्क है जिसकी गति एवं क्षमता को बढ़ाना अति आवशयक है और आप इस नेटवर्क को शीघ्र दुरुस्त करने का कष्ट करें ताकि जीएसटी की प्रक्रियाओं के पालन में व्यापारी वर्ग को परेशानी ना हो. जीएसटीएन एक राष्ट्रीय नेटवर्क है और इसके लगातार असफल होने को अब आंकड़ों से छुपाया नहीं जा सकता है अत: आप जीएसटी नेटवर्क के सेवा प्रदाता को इस बात के लिए बाध्य करे कि जीएसटी नेटवर्क की गति एवं क्षमता इस तरह बढाए कि आने वाले 10 साल तक के बढे हुए काम को यह झेल सके जो कि सुचना प्रोद्योगिकी का एक मूल सिद्धांत होता है जिसका पालन जीएसटी नेटवर्क की कार्यप्रणाली में नही किया गया है.
जीएसटी नेटवर्क की असफलता के लिए बार –बार यह प्रयास किये गए हैं कि इसके लिए डीलर्स और प्रोफेशनल्स को जिम्मेदार ठहरा दिया जाए या उन्हें यह कहा जाए कि वे आखिरी दिनों में रिटर्न क्यों भरते हैं और यह कोई इस समस्या का कोई व्यवहारिक हल नहीं है और इसके लिए आपको जीएसटी नेटवर्क को मजबूत करना होगा ताकि डीलर्स इसका उपयोग करते हुए जीएसटी की प्रक्रियाओं का निर्बाध तरीके से पालन कर सके. जीएसटी नेटवर्क एक सुविधा होना चाहिए जब कि यह एक असुविधा में परवर्तित हो चुका है जिसमें शीघ्र सुधार की आवश्यकता है और यदि वर्तमान में जो जीएसटीएन सेवा प्रदाता है उनके द्वारा यह सम्भव नहीं है तो सरकार उन्हें दूसरे सेवा प्रदाता से बदल दें जो कि खराब सेवा देने पर इस तरह सेवा प्रदाता बदल देने का व्यवहारिक नियम है और सरकार भी उसका जनहित में पालन करें ताकि लम्बे समय से चल रही यह समस्या हल हो.
जीएसटी नेटवर्क में खामियां है और यहाँ विशेष बात यह है कि इसके लिए जिम्मेदार पक्ष इसे स्वीकार करने को तैयार नहीं है और इसी कारण से कोई सुधार नहीं हो रहा है . सबसे पहले जरुरी है कि जिम्मेदार पक्ष जीएसटी नेटवर्क की कमियाँ स्वीकार करे तभी इसमें सुधार होगा और यह सुधार सबसे ज्यादा जरुरी है क्यों कि जीएसटी नेटवर्क ठीक प्रकार से कार्य करे ये जीएसटी की सफलता के लिए जरुरी है.इसके अतिरिक्त जीएसटी के वार्षिक रिटर्न में एक और सुविधा जोड़ी जानी चाहिए कि डीलर ने अपनी इनपुट क्रेडिट किस तरह से और कब ली है एवं इसके अतिरिक्त अपना कर किस प्रकार से गणना की है और इसे किस प्रकार से चुकाया है इसका कोई स्पष्टीकरण देना चाहे तो दे सके क्यों कि जिस प्रकार से रिटर्न बनाए और भरे गए है कि उनसे अधिकांश मामलों में कर निर्धारण नहीं किया जा सकेगा और जितने ज्यादा नोटिस जारी होंगे उतना ही जीएसटी का स्वरुप विकृत होता जाएगा.
जीएसटी सरलीकरण कब होगा?
जीएसटी की प्रक्रियाएं बहुत ही मुश्किल है इन्हें आसान किये बिना जीएसटी की सफलता को पाना काफी मुश्किल है अत: अब सरलीकरण की प्रक्रिया शीघ्र ही प्रारम्भ करने का कष्ट करेंजीएसटी भारत में अप्रत्यक्ष कर प्रणाली को सरल बनाने के लिए लाया गया एक बहुत ही महत्वकांक्षी और साहसिक कदम था लेकिन इस समय जो जीएसटी की स्तिथी चल रही है उससे ऐसा लगता है कि जीएसटी का यह मुख्य उद्देश्य काफी पीछे चला गया है या यों कहे कि अदृश्य ही हो गया है और इस समय जिस तरह से जीएसटी की प्रावधानों को व्यापार एवं उद्योग के विरुद्ध काम में लिया गया है उससे लगता है कि अब सरलीकरण के सिद्दांत को पूरी तरह से छोड़ दिया गया है अब कानून निर्माता प्रक्रियाओं को आसान बनाये और अव्यवहारिक प्रावधानों को हटाने का कार्य अब शुरू कर दें तो देश के व्यापार , उद्योग एवं अर्थव्यवस्था के लिए एक अच्छा वातावरण तैयार होगा जिसका वादा जीएसटी लाते समय किया गया था.भारत की अर्थव्यवस्था बिना लघु और मध्यम उद्योग और व्यापार के नहीं चल सकती है इसलिए चूँकि यह वर्ग इस समय जीएसटी के कारण संकट में है अत; अब सरकार जीएसटी से जुडी समस्याओं का निवारण करें और इस और भी ध्यान दें कि इस वर्ग को लगातार जीएसटी नोटिस मिल रहे हैं जो कि इनकी मुश्किलें और भी बढ़ा रहे हैं अत: हमारे कानून निर्माता इस बात की जाँच करवाएं और तकनीकी कारणों से जारी नोटिसों की संख्या कम करवाएं और यदि इस गति से नोटिस जारी हो रहें है सरकार यह मान लें कि व्यापारी बहुत अधिक संख्या में इस इस कानून का पालन नहीं कर पा रहें हैं और कानून में जो अव्यहारिक प्रावधान है उन्हें सरकार हटाने का कष्ट करें क्यों कि यह तो हम सभी , जिसमें कानून निर्माता भी शामिल है , मानेंगे कि इतनी बड़ी सख्यां में यदि गलतियां हो रही है तो फिर खामी कानून में ही है और इसें सुधार की अतिशीघ्र आवश्यकता है.
जिस संख्या में जीएसटी नोटिस जारी हो रहें हैं उसी से हमारे कानून निर्माता यह मान लें कि प्रक्रियाएं बहुत अधिक कठिन है और इनका पालन करने में कई तकनीकी गलतियां हुई है अब उन गलतियों को सुधरने का मौक़ा दिया जाना चाहिए तभी यह कर सफलता पूर्वक लागू हो सकेगा वरना उलझने सुलझनें की जगह और भी उलझती चली जायेगी और इस प्रकार जीएसटी डीलर्स के बहुत सारे मामले अदालतों में भी जायेंगे जो कि किसी भी सरल कर प्रणाली के लिए उचित बात नहीं है.इस कोरोना काल में जीएसटी को लेकर समस्याएं दूर कर दी जायें तो पूरे देश के साथ बंगाल के व्यापारियों को भी काफी राहत मिलेगी.
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