कृषि सुधार कानूनों को रद करने की मांग पर अड़े किसान संगठनों ने सरकार की अगले दौर की वार्ता 30 दिसंबर को करने की हामी तो भर दी लेकिन मांग में कोई नरमी नहीं हैं। इसके साथ-साथ एमएसपी की गारंटी, पराली जलाने पर जुर्माना न होने व बिजली अध्यादेश में बदलाव की मांग भी शामिल है। ऐसे में वार्ता कितनी सफल होगी यह कहना तो मुश्किल है, लेकिन फिलहाल सकारात्मक पहलू यह है कि 25 दिन के बाद फिर वार्ता की सूरत बनी है। सरकार की ओर से वार्ता में हिस्सा लेने के लिए 40 संगठनों के नेताओं को बुलावा भेजा गया है। इसके पहले किसान मोर्चा ने अपने कुछ मुद्दों के साथ 29 दिसंबर को वार्ता में आने का प्रस्ताव भेजा था।
कृषि सचिव संजय अग्रवाल ने अपने पत्र में किसान संगठनों के उठाए गए मुद्दों पर विस्तृत चर्चा करने की बात कही है। अग्रवाल ने कहा है कि सरकार साफ नियत और खुले मन से प्रासंगिक मुद्दों के तर्कपूर्ण समाधान के लिए प्रतिबद्ध है। इससे सकारात्मक नतीजे पर पहुंचने की उम्मीद जगी है। राजधानी दिल्ली के विज्ञान भवन में वार्ता 30 दिसंबर को दोपहर दो बजे से शुरू होगी। इसके पहले आखिरी वार्ता पांच दिसंबर को यहीं हुई थी, जिसमें किसान संगठनों के अड़ियल रख के चलते वार्ता में गतिरोध पैदा हो गया था।
स्पष्ट और खुले मन व साफ नीयत के साथ हिस्सा लेने की बात
किसान नेताओं ने इस पूरी वार्ता के दौरान सरकार से जवाब 'हां या ना' में मांगने लगे। उनकी जिद थी कि सरकार नए कृषि कानूनों को रद करे और न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) की कानूनी गारंटी के लिए हां या ना में जवाब दे। किसान प्रतिनिधि इन मुद्दों पर चर्चा तक को राजी नहीं हुए। ताजा वार्ता प्रस्ताव में सरकार की ओर से स्पष्ट और खुले मन व साफ नीयत के साथ हिस्सा लेने की बात कही गई है।
एमएसपी पर भी की जाएगी चर्चा
किसान मोर्चा ने पिछली बार भी अपने प्रस्ताव में इसी तरह के संकेत दिए थे। सरकार के प्रस्ताव में किसान मोर्चा के पिछले पत्र का हवाला देते हुए कहा गया है कि आपके भेजे विवरण के संदर्भ में तीनों कानूनों और न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) की खरीद व्यवस्था पर चर्चा की जाएगी। इसके साथ एनसीआर और आसपास के क्षेत्रों की वायु गुणवत्ता प्रबंधन के लिए जारी अध्यादेश-2020 और विद्युत संशोधन विधेयक-2020 में किसानों से संबंधित मुद्दों पर विस्तृत विचार-विमर्श भी किया जाएगा।
अमित शाह ने की थी किसानों से अनौपचारिक बातचीत
30 दिसंबर को सरकार की ओर से केंद्रीय मंत्री स्तरीय समिति इन मुद्दों पर समाधान के लिए वार्ता करेगी। दोनों पक्षों के बीच अब तक पांच दौर की वार्ता हो चुकी है। इसके बाद छठे चरण के लिए नौ दिसंबर को प्रस्तावित बैठक से पहले गृह मंत्री अमित शाह ने किसान नेताओं के साथ अनौपचारिक बातचीत की। उन्हीं के सुझाव पर अगले दिन सरकार की ओर से किसान संगठनों को उन मुद्दों की सूची भेजी गई, जिन्हें पिछली वार्ताओं में चिन्हित किया गया था। लेकिन उस प्रस्ताव को किसान संगठनों ने खारिज कर आंदोलन को तेज करने की घोषणा कर दी। 26 दिसंबर को सरकार को किसान मोर्चा ने पत्र भेजकर वार्ता की तिथि 29 दिसंबर तय करने को कहा, जिसे सरकार ने 30 दिसंबर कर दिया है। इसी दिन किसान मोर्चा ने सिघु बार्डर और टिकरी बार्डर से कुंडली-मानेसर-पलवल तक ट्रैक्टर मार्च का एलान कर रखा है।
कृषि सुधारों के जरिये सरकार ने किसानों की आमदनी को बढ़ाने के लिए नए कानून पारित कराए हैं। इसके विरोध में जहां एक ओर कुछ किसान संगठन आंदोलन का रास्ता अख्तियार किए हुए हैं, वहीं कुछ किसान संगठनों ने इसके पक्ष में आंदोलन शुरू करने की धमकी दी है। वे लगातार कृषि मंत्री नरेंद्र तोमर से मुलाकात कर अपनी बात रख रहे हैं। सरकार कानून विरोधी आंदोलन को विपक्षी दलों की कारस्तानी मान रही है। उसका आरोप है कि विपक्षी राजनीतिक दल अपना एजेंडा चलाने के लिए किसानों को गुमराह कर रहे हैं।
जल्द गिरेगी झूठ की दीवार
कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर ने सोमवार को एक समारोह में कहा कि नए कानूनों के खिलाफ किसानों के बीच सुनियोजित तरीके से झूठ की दीवार खड़ी की गई है। ऐसा लंबे समय तक नहीं चलेगा। प्रदर्शनकारी किसानों को जल्द सच्चाई का अहसास होगा और झूठ की दीवार जल्द गिरेगी। उन्होंने कहा कि कृषि सुधार के नए कानूनों को कृषि क्षेत्र का बेहतर भविष्य सोच कर लाया गया है। ये कानून गरीबों और लघु व सीमांत किसानों के लिए फायदेमंद साबित होंगे।
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