गोबर से बना रहीं आकर्षक दीए और कलात्मक चीजें, इन महिलाओं ने ऐसे संवारी अपनी जिंदगी


छत्तीसगढ़ के बहुत से गांवों में आज भी लोगों के लिए जीविकोपार्जन के साधन बेहद सीमित हैं. सूदूर इलाकों में रहने वाले लोग सिर्फ खेती और पशुपालन पर ही निर्भर हैं. इस वजह से वे अपनी आर्थिक परिस्थितियों के अंदर ही जकड़े रहते हैं, लेकिन किसी को अपनी परिस्थियां बदलने के लिए सिर्फ एक सकारात्मक सहयोग की जरूरत होती है. अगर शासन प्रशासन या समाजसेवी संगठनों का सकारात्मक सहयोग मिले तो पूरे गांव और क्षेत्र के लोग मिलकर अपनी परिस्थितियों को बदल देते हैं.

कोंडागांव जिले के गांव बड़े कनेरा की महिलाओं की कहानी भी कुछ ऐसी ही है. कुछ समय पहले तक यह महिलाएं खेतों में काम करतीं, घर संभालतीं और गोठान में गाय का गोबर उठाते नजर आती थीं. इन्हीं महिलाओं ने आज गाय के गोबर को अपनी आर्थिक और सामाजिक स्थिति मजबूत करने का जरिया बना लिया है. गांव की महिलाओं का एक समूह इस काम में लगा है और ये गोबर से आकर्षक दीए बनाने के साथ-साथ कई तरह की कलात्मक चीजें बना रही हैं. इनकी इस कलात्मक्ता के कद्रदान भी बहुत हैं। कोंडागांव की यह कला अब पूरे देश में अपनी पहुंच बना रही है.

अनोखी कलाकारी के जरिए आत्मनिर्भर हो रही हैं महिलाएं

कुछ समय तक इस गांव की महिलाएं गरीबी से जूझते हुए अपना परिवार चला रही थीं. महिलाओं को राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन, बिहान के स्व सहायता समूहों से जोड़कर प्रशासन द्वारा महिलाओं की आर्थिक स्थिति में सुधार लाने का प्रयास किया गया. यह प्रयास सफल रहा और अब महिलाएं इस अनोखी कलाकारी के  जरिए आत्मनिर्भरता की ओर कदम बढ़ा रही हैं. ग्राम बड़े कनेरा की महिलाओं द्वारा गोबर से निर्मित दीए इस दिवाली में घरों को रोशन करने के लिए तैयार हं. महिलाएं गोबर के दिए, स्वास्तिक चिन्ह, गणेश की मूर्ति आदि का निर्मांण कर रही हैं.

देवकी मानिकपुरी, संतोषी कश्यप, संपत्ति कुलदीप ने बताया कि 26 सितंबर तीन दिनों का प्रशिक्षण हमें दिया गया. इसके बाद अलग-अलग समूहों की 15 महिलाओं ने गौशाला में गोबर के उत्पाद तैयार करने का काम शुरू किया है. प्रशिक्षण लेने के पश्चात समूह की महिलाएं इत्मीनान से गोबर से दीए, स्वास्तिक चिन्ह, की रिंग, गणेश की मूर्ति जैसी चींजों का निर्माण कर रही हैं.अनोखी कलात्मकता से सजी इन चीजों की कीमत भी बेहद कम है.

गाय के गोबर में मिलाते हैं गोंद

महिलाओं ने बताया कि करीब ढ़ाई  किलो गोबर के पाउडर में एक किलो प्रीमिक्स व गोंद मिलाते हैं। गीली मिट्टी की तरह सानने के बाद इसे हाथ से खूबसूरत आकार दिया जाता है. इसके बाद इसे दो दिनों तक धूप में सुखाने के बाद अगल-अलग रंगों से सजाया जाता है. कामधेनु गौशाला बड़े कनेरा की संचालिका बिंदु शर्मा ने बताया कि पुलिस विभाग की ओर से दीयों का आर्डर आया है. अभी तक दो हजार दीयों का निर्माण हुआ है. इको फ्रेंडली होने के चलते राज्य के अन्य शहरों और अन्य राज्यों से भी इसकी मांग आ रही है. इसके अलावा यहां महिलाएं बचे हुए गोबर चूर्ण और पत्तियों से ऑर्गेनिक खाद भी बना रही हैं.

जिला पंचायत कोंडागांव की मुख्य कार्यपालन अधिकारी नूपुर राशि पन्ना ने बताया कि राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन के माध्यम से बड़े कनेरा में 15 महिलाओं को हमने गोबर के दिए और ऑर्गेनिक खाद बनाने का प्रशिक्षण दिया है. अभी दूसरी बेच को प्रशिक्षण देने की तैयारी चल रही है. इको फ्रेंडली होने के कारण इन दीयों की काफी मांग आ रही है. यहां सफलता के बाद अब जिले के दूसरे इलाकों में भी प्रशिक्षण कार्यक्रम चलाएंगे.

 

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