राजस्थान में घुमंतू जातियों को शहरों मे मिलेगी निशुल्क जमीन Jaipur News


राजस्थान की मौजूदा सरकार राज्य की घुमंतू जातियों को शहरों में 50-50 वर्ग की निशुल्क जमीन देगी। राजस्थान के स्वायत्ता शासन विभाग ने इस बारे मे आदेश जारी कर दिए है। नगरीय निकायों का कहा गया है कि इन जातियों के लिए जमीनें चिन्हित कर इन्हें भूखण्ड आवंटित किए जाएं।

राजस्थान में कांग्रेस ने अपने चुनावी घोषणा पत्र में घुमंतू जातियों को निशुल्क भूखण्ड आवंटित करने का वादा किया था। उसी वादे को पूरा करते हुए यह आदेश जारी किया गया है। अभी यह आदेश सिर्फ शहरी क्षेत्रों के लिए जारी किय गया है। बताया जा रहा है कि कुछ समय बाद ग्रामीण क्षेत्रों के लिए भी ऐसा आदेश जारी किया जाएगा। राजस्थान में घुमंतू जातियों में गाडिया, लुहार, बंजारों सहित 32 जातियां शामिल हैं। इस बारे में 1964 में एक अधिसूचना जारी हुई थी। ये जातियां मुख्य तौर पर लुहार, पशुपालन व अन्य इसी तरह के काम करती हैं और एक स्थान पर नहीं रहती हैं। काम के हिसाब से इनका ठिकाना बदलता रहता है। यही कारण है कि इनकी आबादी का कोई निश्चित आकडा सरकार के पास नहीं है। एक अनुमान के अनुसार, राजस्थान में करीब 60 से 65 लाख लोग इन जाति समुदायों के हैं। राजस्थान के सभी जिलों में घुमंतू जातियों की जनसंख्या है, लेकिन पश्चिमी राजस्थान के जोधपुर, बाडमेरर, जैसलमेर, जालौर, सिरोही आदि जिलों में इनकी जनसंख्या अधिक है।

अब सरकार इन जातियों के लोगों को जारी जाति प्रमाण पत्र के आधार पर इन्हें जमीन का आवंटन करेगी। नगरीय निकाय अपने क्षेत्र में इनके लिए जमीन चिन्हित करेंगे और वहं इन्हें बसाया जाएगा। इन्हें दी गई जमीन कोई अन्य जाति समुदाय नही खरीद सकेगा और ये खुद भी 20 वर्ष तक इस जमीन को नहीं बेच सकेंगे। इन जातियों के लिए कई वर्ष से काम कर रहे मजदूर किसान शक्ति संगठन के कार्यकर्ता पारस बंजारा कहते हैं कि इस आदेश के लिए तो हम सरकार का धन्यवाद करते हैं, लेकिन ऐसे आदेश पूर्व सरकारें भी जारी कर चुकी है और उन आदेशों को लागू होने मे कई तरह की समस्याएं सामने आ चुकी है। सरकार आदेश तो जारी कर देती है, लेकिन निचले स्तर पर यह लागू नहीं हो पाते हैं।

स्थानीय समुदाय इन जातियों को गांव या कस्बों के आस-पास बसने ही नहीं देना चाहते। ये लोग बस भी जाते हैं तो इनकी बस्तियां उजाड़ा दी जाती हैं। कुछ वर्ष पहले आबू के देलवाडा में तो पूरी बस्ती को जला दिया गया था। ऐसे यही स्थिति शहरों मे होती है। कोई भी नगरीय निकाय मौके की जमीनें इन्हें नहीं देना चाहता। इन्हें अपने आजीविका स्थल से दूर कही ऐसी जगह जमीन दी जाती है, जहां कोई जाना नहीं चाहता। ऐसे में ये लोग वहां जाते ही नहीं है और शहरों में ही अवैध बस्तियां बसा कर रह जाते है। सरकार को एक समिति बनानी चाहिए, जिसमें समुदाय के लोगों की भागीदारी हो और उस समिति की राय से ही शहरों और गांवों में उचित स्थान का चयन कर इन्हें भूखण्ड दिए जाने चाहिए, ताकि ये एक स्थान पर बस सकें और अपनी आजीविका कमाते हुए जीवन यापन कर सकें। 
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