''फोबिया'' की कहानी अच्छी पर गति बेहद धीमी


इस सप्ताह प्रदर्शित फिल्म 'फोबिया' कथानक के लिहाज से अच्छी फिल्म है लेकिन निर्देशकीय खामियां इतनी हैं कि हॉरर फिल्मों के शौकीन दर्शकों की उम्मीदों पर यह फिल्म खरी नहीं उतर पायेगी। इस फिल्म के निर्देशक पवन कृपलानी इससे पहले 'रागिनी एमएमएस' और 'डरः एट द मॉल' बना चुके हैं। यह दोनों ही फिल्में बॉक्स आफिस पर अच्छा प्रदर्शन नहीं कर पाई थीं लेकिन पवन की गिनती हॉरर फिल्मों के निर्देशकों में जरूर की जाने लगी थी।

फिल्म की कहानी महक (राधिका आप्टे) के इर्दगिर्द घूमती है जोकि एगोराफोबिया से पीड़ित है। यह ऐसी बीमारी है जिसमें रोगी घर से बाहर या किसी अनजान जगह पर जाने के नाम से ही घबरा जाता है। दरअसल एक बार महक जब एक कला प्रदर्शनी से देर रात को लौट रही होती है तो बीच रास्ते में गाड़ी रोक कर टैक्सी ड्राइवर उससे बलात्कार का प्रयास करता है लेकिन महक खुद को बचाने में कामयाब रहती है। लेकिन इस घटना के बाद से वह अवसाद से घिर जाती है। महक का दोस्त शान (सत्यदीप मिश्रा) उसका साथ देता है। शान को लगता है कि महक कुछ दिनों के लिए यदि अपने घर से दूर कहीं और रहने जाए तो शायद उसकी मानसिक स्थिति ठीक हो जाए। वह अपने एक दोस्त के फ्लैट में महक के साथ रहने के लिए आता है। फ्लैट में आने के बाद महक का डर और बढ़ जाता है क्योंकि उनके आने से पहले जो लड़की यहां रहती थी वह अब यहां नहीं दिखती और महक को लगता है कि उसकी लाश घर में ही कहीं गड़ी हुई है।

अभिनय के मामले में राधिका आप्टे शानदार रहीं। जो लोग अभी तक उनको गंभीर अभिनेत्री नहीं मानते थे वह शायद अब अपनी राय बदल लेंगे। सत्यदीप मिश्रा का काम भी दर्शकों को पसंद आएगा। अन्य सभी कलाकार सामान्य रहे। निर्देशक ने फ्लैश बैक का कुछ ज्यादा ही सहारा लिया है और यही फिल्म का सबसे कमजोर पक्ष है। इंटरवेल के बाद की फिल्म दर्शकों को बांधे रखती है। फिल्म का बैकग्राउंड म्यूजिक दर्शकों को भाएगा।

कलाकार- राधिका आप्टे, सत्यदीप मिश्र, यशस्वनी, अंकुर विकल, निवेदिता भट्टाचार्य।
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