'ठंडा-ठंडा, कूल-कूल, बंगाल में तृणमूल'


पश्चिम बंगाल में अपनी हर चुनावी मीटिंग (रैली) के दौरान मंच पर चहलकदमी करते हुए ममता बनर्जी आक्रमक मुद्रा में यदि कोई राजनीतिक जुमले बार-बार दोहरा रही थी तो वह था, 'ठंडा ठंडा कूल कूल पश्चिम बंगाल में तृणमूल'। क्या मां-माटी-मानुष की नेत्री ममता का यह सपना इस चुनाव में पूरा होगा?

क्या बंगाल के लोग दू जोड़ा फूल (तृणमूल का चुनाव चिन्ह) के प्रति अपना मन बना पाएंगे? क्या वामदल व कांग्रेस का जोट गठबंधन राह में खड़े करेगा मुश्किलात? क्या भाजपा रोक पाएगी दीदीगीरी की रफ्तार? यह सब ऐसे सवाल हैं जिससे समकालीन भारतीय राजनीति में रुचि रखने वाले हर शोधार्थी जूझता है। शायद इसलिये वह इस पूरे विमर्श को समझना भी चाहता है।

क्या कहते हैं टोटो सेवा चालक : ममता बनर्जी के शासन काल में पूरे बंगाल में सड़कों पर बैट्री सेवा वाहन, जिसे बंगाल में टोटो सेवा कहते हैं को दौड़ते हुए देखा जा सकता है। टोटो गाड़ी चलाने वाले तूफानगंज निवासी बप्पा की मानें तो ‘इस बार फिर बंगाल में दीदी ही चलेगा।

बंगाल के बाहर दूसरा नेता चल सकता है, मगर हमारे बंगाल का सुपर हीरो ममता दीदी ही है। यहां सबके जुबान पर आप ममता दीदी का ही नाम सुनेंगे’। जब मैंने पूछा कि क्यों आपको लगता है वह आपको सुपर हीरो। इस पर आक्रमक तरीके से बप्पा बोला ‘ममता दीदी ने पांच साल में बहुत काम किया है,  मेडिकल कॉलेज व कृषि कॉलेज बनवाया है, हाईवे में काम चल रहा है। पहले मैं चाकरी की तलाश में इधर-उधर भटकता था, थोड़ा दिन लॉटरी भी खेला, परन्तु जब से दीदी ने टोटो गाड़ी को चलाया है मेरे जैसे बेरोजगार युवक को रोजगार मिल गया है। मेरे लिए दीदी सुपर हीरो से कम है क्या?

आधी आबादी की क्या है आवाज़ : हालांकि आधी आबादी की आवाज़ बंटी हुई दिखाई पड़ती है। परन्तु ममता बनर्जी के कार्यकाल में शुरू की गई योजनाओं पर सबने उन्हें पूरा क्रेडिट दिया है। दर्ज़ी पाड़ा में रहने वाली प्रतिमा दास के बाबत ‘दीदी के आने से बंगाल में काफी उन्नयन हुआ है, विशेष रूप से गरीब लोगों का खूब फायदा हुआ है, मेरी बेटी दसवीं में पढ़ती है, व मूक-बधिर है, उसे सरकार से साईकिल मिला एवं 2 हजार रुपया साल में मिलता है, वहीं हमलोगों को दो रुपया किलो चावल और साढ़े तीन रुपये किलो आटा मिलता है, वाम के शासन में यह सब सुविधा नहीं था, दीदी के आने से हमारा सशक्तीकरण हुआ है’हमें बल मिला है।

सादगी पूर्ण चरित्र के सभी हैं कायल : बंगाल में चाहे ममता का कोई समर्थक हो या विरोधी सभी उनके सादगी पूर्ण व्यक्तित्व व साफगोई के मुरीद है। सफेद सूती साड़ी और हवाई चप्पल से उनका नाता कभी नहीं टूटा। ममता संप्रग राजनीति में एक ऐसा चेहरा है, जिसकी कल्पना हर हिन्दुस्तानी अपने नेता से करता है। जीवटता उसके चरित्र की सादगी है, जिद, जुझारुपन एवं समाज के निचले हाशिये पर स्थित तबके लिये गहरी जिजीविषा उनका राजनीतिक श्रृंगार है। समकालीन राजनीति में मनोहर पारिकर, सुरेश प्रभु, माणिक सरकार की तरह ही ममता बनर्जी एक ऐसा चेहरा ऐसा है जिसकी जरुरत भारतीय लोकतांत्रिक व्यवस्था को अदद रुप से है।

कम नहीं है राह मुश्‍किलें : पांच साल के शासनकाल में ममता ने बहुतों को निराश भी किया, उनके बहुत सारे साथी मसलन कौशिक सेन, कबीर सुमन आज उनसे दूर हो चुके हैं। अरुणाभ घोष जैसे उनके बेहद करीबी ममता को आत्म-मुग्धता का शिकार बताते हुए आज कांग्रेस का दामन थाम चुके हैं, जिस सिंगूर व नंदीग्राम में संघर्ष का बिगुल फूंककर ममता सत्ता में आई थी, पांच साल में वह मुद्दे अभी भी ठंडे बस्ते में पड़े हुए हैं।

ममता बनर्जी के कार्यकाल में शारदा चिट फंड के मामले ने जहां लोगों को निराश किया, बाकी कसर नारदा स्टिंग ने कर दी। कोलकाता में ब्रिज ढ़हने की घटना ने तो कोढ़ में खाज का काम किया। ऐसे में उनके विरोधी तृणमूल हटाओ, बंगाल बचाओं का नारा देने से नहीं चूकते।

ममता के काम से नाखुश कूचबिहार के खगड़ाबाड़ी निवासी एन.सी बर्मन के अनुसार, ‘ममता ने बाकी जगह क्या किया है पता नहीं, लेकिन कूचबिहार में उन्होंने बस सांत्वाना दी है। ममता दीदी के सरकार पर भ्रष्टाचार के गंभीर आरोप लग रहे हैं। ‘नारदा से शारदा’का जुमला आज सब कोई बोल रहा है। ऐसे में दीदी के लिये यह चुनाव परिणाम बहुत चुनौतीपूर्ण होगा’।

कौन जीतेगा ये चुनावी खेल :इस सवाल का बेहद खूबसूरत व सटीक जवाब पोस्टल सेवा से सेवानिवृत हुए पवित्र विश्वास ने प्रतीकात्मक रूप से इस प्रकार दिया- ‘मेरे हिसाब से वाममोर्चा पुराना जामा (कपड़ा) है, जिसे हमने तीन दशक तक पहन लिया, अब यह कपड़ा हम त्याग चुका है, तृणमूल नूतन जामा (कपड़ा) है, जिसे बंगाली लोग पसंद कर रहा है, इसका स्टाईल को लेकर मतभेद हो सकता है, परन्तु अभी सबका पसंद यही है। भाजपा का जहां तक सवाल है, इसे अभी बंगाल में टाइम लगेगा। भाजपा अभी थान का कपड़ा है, अभी इसको दर्जी सिलेगा, फिर आगे बंगाल का लोग इसे पहनेगा’।

समग्र रुप से बंगाल का चुनावी भविष्य तो अब ईवीएम में बंद हो चुका है। हार या जीत किसी दल का हो, मुख्यमंत्री कोई बने, बंगाल की सत्ता किसे भी मिले। इतना तो तय है कि बंगाल का ताज चुनौतियों, झंझावतों व मुश्किलातों से युक्त होगा। सिंगूर व नंदीग्राम पर एक विशेष पहल करनी होगी, जंगलमहल जैसे गंभीर इलाके पर एक समझौतामूलक रवैया अख्तियार करना होगा।

चाय बागान के श्रमिकों का मुद्दा हो या राजवंशी समुदाय के सक्तिकरण का सबपर पैनी नजर रखनी होगी। हमारे नुमाइंदे को यह बात भलीभांति पता होना चाहिए कि बंगाल का उन्नयन (विकास) केवल कोलकाता एवं पार्क स्ट्रीट, साल्ट लेक तक सीमित नहीं होना चाहिए। एक समतामूलक व विकसित बंगाल ही समकालीन भारत की जरूरत है। — डॉ पंकज झा 

(http://khabar.ibnlive.com से साभार)
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