चुनाव प्रक्रिया में हस्तक्षेप नहीं: हाईकोर्ट

कोलकाता : अस्थाई चुनाव आयुक्त आलापन बनर्जी की नियुक्ती तथा उनके आदेश को चुनौती देने संबंधी याचिका की सुनवाई के बाद कलकत्ता हाईकोर्ट ने गुरुवार को चुनाव प्रक्रिया में हस्तक्षेप करने से इनकार कर दिया. विधाननगर के एक निवासी द्वारा हाईकोर्ट में दायर याचिका की सुनवाई करते हुए न्यायाधीश दीपंकर दत्त ने अस्थाई चुनाव आयुक्त द्वारा पुर्नमतदान या मतगणना नहीं कराने संबंधी आदेश देने की मांग पर पर कहा कि न्यायालय चुनाव प्रक्रिया में हस्तक्षेप नहीं कर सकता. हालांकि, उन्होंने अस्थाई चुनाव आयुक्त के पद पर आलापन बनर्जी की नियुक्ती को चुनौती देने संबंधी याचिका स्वीकार कर ली. मामले की सुनवाई शुक्रवार को भी जारी रहेगी. वहीं, न्यायालय ने चुनाव आयुक्तों की नियुक्ती संबंधी सारी फाइलें राज्य सरकार से मांगी है. न्यायालय ने ऐसा इसलिए किया है ताकि इस बात का पता चल सके कि चुनाव प्रक्रिया नियमों के तहत हुआ है या नहीं. 

इससे पहले अभियोजन पक्ष की ओर से दलील पेश करते हुए वरिष्ठ अधिवक्ता समरादित्य पाल ने पूर्व चुनाव आयुक्त सुशांत रंजन उपाध्याय का हवाला देते हुए न्यायालय को बताया कि उपाध्याय ने उनपर दबाव देने की बात कही है. एक संवैधानिक पद पर बैठ व्यक्ति पर इस तरह का दबाव डालना गलत है. पाल ने कहा कि उपाध्याय के आरोप से दहशत के माहौल का पता चलता है. उन्होंने कहा कि तृणमूल नेताओं ने जिस तरीके से उन पर दबाव डाला, उससे लोकतंत्र खतरे में पड़ गया है. दलील जारी रखते हुए उन्होंने कहा कि राज्य सरकार ने आलापन बनर्जी को धारा ३(२) के तहत अस्थाई पर पर नियुक्त किया है जो पूरी तरह गैर कानूनी है. इस धारा को १९९४ में तत्कालीन वामो सरकार द्वारा तैयार किया गया था. उन्होंने कहा कि इससे पहले सर्वोच्च न्यायालय ने गुजरात के एक मामले की सुनवाई करते हुए इस तरह की धारा को गैर-कानूनी साबिूत कर दिया था. सर्वोच्च न्यायालय ने स्पष्ट कर दिया था कि इस पद पर राज्य सरकार के अधीनस्थ कर्मी नहीं बैठ सकते हैं. केवस अवकाश प्राप्त अधिकारी ही इस पद पर बैठ सकते हैं. दोनों पक्षों की दलील सुनने के बाद न्यायाधीश ने चुनाव प्रक्रिया में हस्तक्षेप से इनकार कर दिया. हालांकि नियुक्ती प्रक्रिया को चुनौती देने वाली याचिका पर शुक्रवार को भी सुनवाई जारी रखने का आदेश दिया. वैसे, न्यायालय ने सभी पूर्व चुनाव आयुक्तों की नियुक्ती संबंधी सारी फाइलें राज्य सरकार से मांगी है. न्यायालय ने ऐसा इसलिए किया है ताकि इस बात का पता चल सके कि चुनाव प्रक्रिया नियमों के तहत हुआ है या नहीं. न्यायालय देखना चाहता है कि दायर याचिका में कितनी सत्यता है. 
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